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________________ १५ गुणराशि वहाँ कुछ वृद्धों से इनके बाल्य जीवन आदि के विषय में परिचय प्राप्त किया, तो ज्ञात हुआ कि ये पुण्यात्मा महापुरुष प्रारंभ से ही असाधारण गुणों के भंडार थे । इनका परिवार बड़ा सुखी, समृद्ध, वैभवपूर्ण तथा जिनेन्द्र का अप्रतिम भक्त था। इनकी स्मरण शक्ति जन साधारण में प्रख्यात थी । इन्होंने माता सत्यवती से सत्य के प्रति अनन्य निष्ठा और सत्य धर्म के प्रति प्राणाधिक श्रद्धा का भाव प्राप्त किया था, ऐसा प्रतीत होता है । अपने प्रभावशाली, पराक्रमी, अत्यंत उदार तथा प्रमाणिक जीवन वाले पूज्य पिता श्री भीमगडा से इन्होंने वह दृढ़ता और गंभीरता प्राप्त की थी, जो इन्हें विपत्ति और संकटके समय भीम के समान साहस सम्पन्न रखती आयी है। इन लोगों ने बताया कि इनमें बच्चों जैसी विवेक विहीन जघन्य प्रवृत्तियाँ नहीं पायी जाती थी । बचपन से ही इनके चिह्न इस प्रकार थे कि ये लोकोत्तर महापुरुष बनेंगे इसलिये ये अलौकिक बालक के रूप में प्रत्येक नर-नारी के मन को अपनी ओर आकर्षित करते थे । जो भी इन्हें देखता था वह इन्हें गंभीरता, करुणा, पराक्रम और प्रतिभा का पुँज पाता था। इनका शरीर अत्यंत निरोग, सुदृढ़ व शक्ति सम्पन्न था। इनकी ऐसी कोइ चेष्टा ही नहीं थी, जिसे बाल कह कर क्षमा किया जाय । बाल्यकाल में ही इनके जीवन में वृद्धों सदृश गंभीरता और विवेक पाया जाता था । इससे यह प्रतीत होता था कि ये जन्मान्तर के महापुरुष इस भरतखंड के लोगों को धर्मामृत पान कराने के लिये ही बाल शरीर धारण कर भव्य भोज भूमि में आविर्भूत हैं और संपूर्ण भव्यों का कल्याण करने वाले वीरशासन के धर्मचक्रधारी सत्पुरुष हैं। प्रज्ञापुँज चारित्र चक्रवर्ती लोगों से ज्ञात हुआ कि इनकी प्रवृत्ति असाधारण थी । ये विवेक के पुँज थे। बाल्यकाल बाल-सूर्य सदृश प्रकाशक और सबके नेत्रों को प्यारे लगते थे। ये जिस कार्य में भी हाथ डालते थे, उसमें प्रथम श्रेणी की सफलता प्राप्त करते थे । इनका प्रत्येक पवित्र कलात्मक कार्य में प्रथम श्रेणी में भी प्रथम स्थान रहा है । अध्ययन के अल्पतम साधन उपलब्ध होते हुये भी, इनका असाधारण क्षयोपशम और लोकोत्तर प्रतिभा बड़े बड़े विद्वानों और भिन्न-भिन्न धर्मों के प्रमुख पुरुषों को चकित करती थी । यद्यपि ये विद्या के उपाधिधारी विद्वान् नहीं थे, फिर भी बड़े-बड़े उपाधिधारी ज्ञानी लोग इनके चरणों के पास आत्मप्रकाश प्राप्त करते थे । सदाचार समन्वित और प्रतिभा अलंकृत इनका जीवन यथार्थ में सौरभ सम्पन्न सरोज के समान था और उसके समान ही ये जलतुल्य वैभव से अपने अन्तःकरण को पूर्णतया अलिप्त रखते थे। T भोजग्राम के वृद्धों से महाराज की जीवन सामग्री भोज के वृद्धजनों से तर्क-वितर्क द्वारा जो सामग्री मिली, उससे हम इस निष्कर्ष पर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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