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प्रथम अध्ययन : पुण्डरीक है कि लो, आयुष्मन् देख लो, यह अरणि है और यह अग्नि है। इसी तरह संसार में कोई भी पुरुष ऐसा नहीं है, जो आत्मा और शरीर को अलग-अलग करके दिखला दे कि आयुष्मन् ! यह आत्मा है, और यह देखो, उससे पृथक् शरीर है। (एवं असंते असंविज्जमाणे जेसि तं सुयक्खायं भवइ, तं जहा-अन्नो जीवो अन्नं सरीरं) इसलिए आत्मा शरीर से पृथक् उपलब्ध नहीं होती, यही बात युक्तियुक्त है। जो लोग वारबार प्रतिपादन करते हैं कि आत्मा पृथक् है और शरीर पृथक्, वे पूर्वोक्त कारणों से मिथ्यावादी हैं उनका कथन सुकथन नहीं है। (से हंता) इस प्रकार शरीर से भिन्न आत्मा को न मानने वाले तज्जीवतच्छरीरवादी नास्तिक आदि लोग स्वयं जीवहिंसक होते हैं--स्वयं जीवों का वध बेखटके करते हैं, (तं हणह, खणह, छणह, डहह, पयह, आलु पह, विलुपह, सहसाक्कारेह, विपरामुसह) वे नास्तिक लोग दूसरों को उपदेश देते हैं- इन जीवों को मारो, जमीन खोदो, यह वनस्पति काटो, इसे जला दो, इसे पकाओ, इन्हें लूट लो, इन पर बलात्कार करो इत्यादि । (एतावता जीवे गत्थि परलोए) क्योंकि शरीर ही जीव है, इससे भिन्न कोई परलोक नहीं है। (ते एवं णो विप्पडिवेदेति) वे शरीरात्मवादी आगे कही जाने वाली बातों को नहीं मानते हैं-(तं जहा-किरियाइ वा अकिरियाइ वा सुक्कडेइ वा दुक्क डेइ वा कल्लाणेइ वा पावएइ वा साहुइ वा असाहुइ वा सिद्धीइ वा असिद्धीइ वा निरएइ वा अनिरएइ वा) जैसे कि शुभक्रिया या अशुभक्रिया, सुकृत या दुष्कृत, कल्याण या पाप, भला या बुरा, सिद्धि या असिद्धि, नरक या स्वर्ग आदि बातों को वे नहीं मानते। (एवं ते विरूवरूर्वेहि कम्मसमारंभेहि विरूवरूवाइं कामभोगाइं समारंभंति भोयणाए) इस प्रकार वे शरीरात्मवादी अनेक प्रकार के कर्म समारम्भ करके अनेक प्रकार के कामभोगों का सेवन करते हैं या विषयों का उपभोग करने के लिए विविध प्रकार के दुष्कृत्य करते हैं । (एवं पब्भिया एगे निक्खम्म मामगं धम्म पन्नवेति) इस प्रकार शरीर से भिन्न आत्मा न मानने की धृष्टता करने वाले कोई नास्तिक अपने मतानुसार प्रव्रज्या धारण करके 'मेरा ही धर्म सत्य है' ऐसी प्ररूपणा करते हैं। (तं सद्दहमाणा तं पत्तियमाणा तं रोएमाणा) उस शरीरात्मवाद में श्रद्धा रखते हुए, उस पर प्रतीति करते हुए तथा उसमें रुचि रखते हुए कोई राजा आदि (समणेति वा माहणेति वा साहु सुयक्खाए) उस शरीरात्मवादी से कहते हैं-हे श्रमण ! हे ब्राह्मण ! आपने यह बहुत उत्तम धर्म मुझे सुनाया है। (आउसो कामं खलु तुमं पूययामि) अतः आयुष्मन् ! मैं आपकी पूजा करता हूँ। (तं जहा-असणेण वा पाणेण वा खाइमेण वा साइमेण वा वत्थेण वा पडिग्गहेण वा कंबलेण वा पायपुछणेण वा) मैं अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य, वस्त्र, पात्र, कम्बल और पादप्रोंछन आदि के द्वारा आपकी पूजा करता हूँ। (तत्थेगे पूयणाए समाउट्टिसु तत्थेगे पूयणाए निकाइंसु) इस प्रकार कहते हुए कोई राजा आदि उनकी पूजा में प्रवृत्त होते
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