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________________ सूत्रकृत्तांग सूत्र णामए केइ पुरिसे मुजाओ इसियं अभिनिव्वट्टित्ताणं उवदंसेज्जा अयमाउसो ! मुजे इयं इसियं) जैसे कि कोई पुरुष मज नामक घास से इषिका (कोमल स्पर्श वाली शलाका) को निकालकर अलग-अलग बता देता है कि यह तो मूज है और यह इषिका है । (एवमेव नत्थि केइ पुरिसे उवदंसेत्तारो अयमाउसो! आया इयं सरीरं) इसी तरह कोई पुरुष ऐसा नहीं है, जो शरीर से आत्मा को अलग करके बतला सके कि हे आयमान् ! यह तो आत्मा है और यह शरीर है। (से जहाणामए केइ पुरिसे मसाओ अट्ठि अभिनिवट्टित्ताणं उवदंसेज्जा अयमाउसो ! मसे अयं अट्ठी) जैसे कि कोई पुरुष मांस से हड्डी को अलग करके बतला देता है कि आयुष्मान् ! यह तो मांस है, और यह हड्डी है । (एवमेव नत्थि केइ पुरिसे उवदसेत्तारो अयमाउसो आया इयं सरीरं) इसी तरह कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है, जो शरीर से आत्मा को अलग करके बतला सके कि यह आत्मा है, और यह शरीर है । (से जहाणामए केइ पुरिसे करयलाओ आमलकं अभिनिव्वटित्ताण उवदंसेज्जा अयमाउसो करयले, अयं आमलए) जैसे कोई पुरुष हथेली से आँवले को बाहर निकालकर दिखला देता है कि आयुष्मन् ! यह हथेली है और यह आँवला है, (एवमेव नस्थि केइ पुरिसे उवदंसेत्तारो अयमाउसो आया इयं सरीरं) इसी प्रकार ऐसा कोई पुरुष नहीं है, जो शरीर से आत्मा को बाहर (अलग) निकालकर बतला दे, कि आयुष्मन् ! यह तो आत्मा है और यह शरीर है। (से जहाणामए केइ पुरिसे दहिओ नवनीयं अभिनिव्वट्टित्ताणं उवदंसेज्जा अयमाउसो ! नवनीयं अयं तु दहो) जैसे कोई पुरुष दही से मक्खन अलग निकालकर दिखला देता है कि आयुष्मन् ! यह मक्खन है और यह है दही, (एवमेव नत्थि केइ पुरिसे जाव सरीरं) इसी तरह कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है, जो शरीर से आत्मा को पृथक् करके दिखला दे कि आयुष्मन् ! देखो, यह आत्मा है और यह शरीर है । (से जहाणामए केइ पुरिसे तिलेहितो तिल्लं अभिनिवट्टित्ताणं उवदंसेज्जा अयमाउसो! तेल्लं अयं पिनाए, एवमेव जाव सरीरं) जैसे कोई पुरुष तिलों में से तेल निकालकर प्रत्यक्ष दिखला देता है कि यह तो तेल है और यह उन तिलों की खली है। इसी तरह कोई भी पुरुष ऐसा नहीं है, जो शरीर को आत्मा से पृथक् करके प्रत्यक्ष दिखला दे कि यह आत्मा है और यह शरीर है, (से जहाणामए इवखूतो खोयरसं अभिनिवट्टित्ताणं उवदंसेज्जा, अयमाउसो खोयरसे अयं छोए, एवमेव जाव सरीरं) जैसे कोई पुरुष ईख से उसका रस निकालकर दिखा देता है कि आयुष्मन् ! यह ईख का रस है, और यह उसका छिलका है । इसी प्रकार कोई भी पुरुष ऐसा नहीं है, जो प्रत्यक्ष यह दिखला दे कि आयुष्मन् ! यह शरीर है, और यह उससे अलग आत्मा है। (से जहाणामए केइ पुरिसे अरणीओ अग्गि अभिनिव्वट्टित्ताणं उवदंसेज्जा अयमाउसो ! अरणी अयं अग्गी, एवमेव जाव सरीरं) जैसे कि कोई पुरुष अरणि की लकड़ी से आग निकालकर प्रत्यक्ष दिखा देता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003600
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1981
Total Pages498
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size23 MB
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