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________________ २६ सूत्रकृतांग सूत्र देखें तो सही ! और शीघ्र ही इस निर्णय पर आता है कि ये चारों पुरुष अखेदज्ञ हैं, अकुशल हैं तथा पूर्वोक्त गुणों से युक्त नहीं हैं और न मार्ग की गति और पर।क्रम का इन्हें ज्ञान है । मुझ में ये दुर्गुण नहीं हैं, यह मैंने अपने अन्तर् को टटोलकर निर्णय कर लिया है, जिन कारणों से ये लोग इस श्वेतकमल को पाने में असफल रहे, उन कारणों को मैं जानता हूँ । इसलिए मैं इन कारणों से दूर ही रहूँगा। तत्पश्चात् उस भिक्षु ने फिर अपनी अन्तरात्मा में डुबकी लगाकर यह निरीक्षण-परीक्षण किया कि मुझ में इस श्वेतकमल को पाने की योग्यता है या नहीं ? भुझ में इतनी आत्मशक्ति है या नहीं, कि मैं उसके जोर से इस श्वेतकमल को अपने पास बुला सकू ? और यह इसी निष्कर्ष पर पहुँचा कि मैं भिक्षाजीवी निःस्पृह साधु हूँ, मुझे स्वार्थ और द्रोह से कोई वास्ता नहीं है। किसी के प्रति मेरे मन में न मोह है, न द्वष है । मैं जानता हूँ कि इस श्वेतकमल को पाने में कितने और किस प्रकार के प्रयास की आवश्यकता है । मैं मोक्ष के तट पर पहुँचने का इच्छुक हूँ, यानी मैं चाहता हूँ कि संसारसागर से पार हो जाऊँ । इसलिए मेरा आत्मविश्वास है कि मोक्ष के समान दुर्लभ्य दुष्प्राप्य इस श्वेतकमल को मैं अवश्य ही पा सकूँगा। और इसी प्रकार के दृढ़ आत्मविश्वास एवं प्रबल आत्मशक्ति से प्रेरित होकर उक्त भिक्षु ने उस पुष्करिणी में प्रवेश नहीं किया सिर्फ पुष्करिणी के तट पर खड़े होकर आवाज दी- अरे श्वेतकमल ! वहाँ से उठकर यहाँ आ जाओ, जल्दी आ जाओ। बस, इतना कहते ही वह श्वेत कमल वहाँ से उठकर पुष्करिणी से बाहर निकल आया । यहाँ यह नहीं बताया गया कि आवाज देने मात्र से कमल अपने स्थान से उठकर पुष्करिणी से बाहर कैसे निकल आया ? इस रहस्य को शास्त्रकार स्वयं ही आगे के सूत्रों में खोलेंगे । यहाँ तो शास्त्रकार को इस रूपक के एक अंश को इतना ही बताना था कि एक पुष्करिणी में उत्पन्न श्वेतकमल को पाने में कौन असफल रहे, कौन सफल ? सारांश ___ इस सूत्र में सत्य (तत्त्व) को समझाने के लिए पुष्करिणी, कमल एवं कीचड़ में फंसे हुए असफल चार पुरुषों तथा किनारे पर खड़े होकर सिर्फ आवाज देकर कमल को बाहर निकालने वाले भिक्षु का दृष्टान्तरूप से कथन किया गया है । इस सूत्र में दान्ति का वर्णन नहीं है । शास्त्रकार ने अगले सूत्रों में इन दृष्टान्तों को घटित किया है। वास्तव में इस (छठे) सूत्र में निःस्पृह साधु की पूर्वोक्त चार पुरुषों से विशेषता बताई गई है कि भिक्षु कितना निःस्पृह, वीतराग, मोक्षार्थी, मार्गज्ञ एवं मार्ग की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003600
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1981
Total Pages498
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size23 MB
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