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________________ प्रथम अध्ययन : पुण्डरीक १७ व्याख्या उत्तम श्वेतकमल को पाने में असफल चार पुरुष इससे पूर्व पहले सूत्र में एक पुष्करिणी और उसमें खिले हुए विशाल सर्वश्रेष्ठ श्वेतकमल की स्थिति बताई गई थी । उसके पश्चात् दूसरे, तीसरे, चौथे और पाँचवें सूत्र में एक-एक करके क्रमश: पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे, यों चारों पुरुषों का वर्णन किया गया है, जो उक्त गुणसम्पन्न विशाल श्वेतकमल को पाने के लिए चले थे, और अपनी विशेषताओं की डींग हाँकते हुए तथा अपने से पहले उक्त श्वेतकमल को पाने में असफल पुरुषों को कोसते हुए ज्यों ही आवेश में आकर पुष्करिणी में आगे बढ़े, और ज्यों-ज्यों आगे बढ़ते गये, त्यों-त्यों उन्हें अधिकाधिक गहरे पानी एवं भारी कीचड़ का सामना करना पड़ा, जिससे वे पस्तहिम्मत होकर वहीं कीचड़ में फँसकर रह गये । उनके पैर न तो आगे बढ़ सके, और न ही वे किनारे की ओर लौट सके, क्योंकि कीचड़ में धँस जाने से उनके कदम वहीं जाम हो गये थे । फलत: 'चौबेजी छब्बे बनने गये, मगर रह गये दुबे ही' वाली कहावत चरितार्थ हुई । ये चारों व्यक्ति बड़ी शेखी बघारते हुए और श्वेतकमल को पाने का दावा करते हुए पुष्करिणी में घुसे थे, मगर वे रास्ते में ही अटककर रह गये। उनसे किनारा भी काफी दूर रह गया और पुण्डरीक कमल भी दूर ही रहा । उनका उत्साह भी ठण्डा हो गया, उनका सारा साहस खत्म हो गया । उनकी सारी हवाई कल्पनायें हवा में ही अधर रह गयीं, उनके मनसूबे धरे के धरे रह गये | वे चारों के चारों ही कीचड़ में फँस जाने श्वेतकमल को देखते के देखते ही रह गये । तात्पर्य यह है कि वे चारों पुरुष श्वेतकमल को पाना तो दूर रहा, उस तक पहुँचने में भी असफल रहे । I 'कारण उक्त प्रधान चारों पुरुषों की श्वेतकमल को प्राप्त करने के लिए उखाड - पछाड़ करने की कहानी तो लगभग एक-सी है । परन्तु चारों के मनोभावों में थोड़ा-थोड़ा अन्तर है । साथ ही उनकी चेष्टाओं में भी जरा-जरा-सा अन्तर पड़ जाता है । मनोवैज्ञानिक दृष्टि से अगर इन चारों मनुष्यों का विश्लेषण किया जाये तो निम्नलिखित प्रकार का सम्भव है Jain Education International सबसे पहला व्यक्ति पूर्वसूत्र में वर्णित पुष्करिणी के बारे में प्रसिद्धि सुनकर सर्वप्रथम तो उसे देखने आया होगा । जब देखने लगा होगा, तब उसने पुष्करिणी' के तट पर खड़े होकर उसके जल पर चारों ओर दृष्टि दौड़ाई होगी, तभी उसके ध्यान में पुष्करिणी के ठीक मध्य में स्थित उन्नत और विशाल श्वेतकमल आया होगा । और बहुत सम्भव है, उसकी दृष्टि में वही एक श्रेष्ठ श्वेतकमल बस गया होगा । काफी देर तक उसने उक्त श्वेतकमल पर दृष्टि गड़ाये रखी होगी, और जब उस For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003600
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1981
Total Pages498
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size23 MB
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