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सप्तम अध्ययन : नालन्दीय
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धम्मे कि आइक्खियव्वे) श्री गौतम स्वामी ने पूछा-क्या ऐसे व्यक्तियों को धर्म सुनाना चाहिए ? (हंता आइक्खियब्वे) निर्ग्रन्थों ने कहा-हाँ, सुनाना चाहिए । (तं चेव उवट्ठावित्तए जाव कप्पंति ?) भगवान् गौतम ने पूछा-धर्मश्रवण के पश्चात् यदि उनमें वैराग्य पैदा हो और वे साधु से सम्यक्धर्म की दीक्षा लेना चाहें तो क्या उन्हें दीक्षा दे देनी चाहिए ? (हंता कप्पंति) हाँ, उन्हें दीक्षा देनी चाहिए, निर्ग्रन्थों ने कहा । (किं ते तहप्पगारा कप्पंति संभुजित्तए) क्या वे दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् साधु के साथ सांभोगिक व्यवहार के योग्य हैं ? (हंता कप्पंति) हाँ, अवश्य योग्य हैं। (ते णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणा तं चेव जाव अगारं वसेज्जा) वे दीक्षा पालन करते हुए कुछ काल तक उसी रूप में विहार करके क्या फिर गृहस्थवास में जा सकते हैं ? (हंता वएज्जा) हाँ, जा सकते हैं । (ते णं तहप्पगारा संभुजित्तए कप्पंति) गृहवास को प्राप्त होकर क्या अब वे सांभोगिक व्यवहार के योग्य हो सकते हैं ? (णो इण? सम? ) नहीं, यह बात सम्भव नहीं है, ऐसा नहीं हो सकता । (से जे से जीवे जे परेणं नो कप्पंति संभुजित्तए) वह जीव तो वही है, जिसके साथ दीक्षा धारण करने से पहले साधु को सांभोगिक व्यवहार करना उचित नहीं होता है, (से जे से जीवे आरेणं कप्पंति संभुजित्तए) और यह वही जीव है, जिसके साथ दीक्षा लेने के पश्चात् साधु को सांभोगिक व्यवहार करना उचित लगता है। (से जे से जीवे इयाणि नो कप्पंति संभुजित्तए) तथा यह वही जीव है जिसने अब साधुत्व का पालन करना छोड़ दिया है, तब उसके साथ साधु को सांभोगिक व्यवहार करना उचित नहीं होता । (परेणं अस्समणे, आरेणं समणे इयाणि अस्समणे) वह जीव पहले (गृहस्थ था तब) अश्रमण था, बाद में श्रमण हो गया और इस समय अश्रमण है । (अस्समणेणं सद्धि नो कप्पंति समणाणं निग्गंथाणं संभुजित्तए) अश्रमण के साथ श्रमण निर्ग्रन्थों को सांभोगिक व्यवहार करना कल्पनीय नहीं होता। (से एवमायाणह णियंठा एवमायाणियव्वं) निर्ग्रन्थो ! इसी तरह यथार्थ जानो और ऐसा ही जानना चाहिए ।
व्याख्या
निर्ग्रन्थों से श्री गौतम स्वामी के प्रश्न-प्रतिप्रश्न इस सूत्र में शास्त्रकार ने गौतम स्वामी द्वारा निर्ग्रन्थ स्थविरों से पूछे गये कुछ प्रश्न और उनके द्वारा दिये गये उत्तर अंकित किये हैं। ये प्रश्न उदक निर्ग्रन्थ के द्वारा प्रत्याख्यान के सम्बन्ध में उठाये गये तथा गौतम स्वामी द्वारा समाहित प्रश्न के सिलसिले में ही उसी की पुष्टि के लिए प्रस्तुत किये गये हैं।
भगवान् श्री गौतम स्वामी ने उदक निर्ग्रन्थ के स्थविरों से पूछा--स्थविर निर्ग्रन्थो ! मैं आपसे पूछना चाहता हूँ कि इस लोक में ऐसे भी व्यक्ति होते हैं, ज इस प्रकार की प्रतिज्ञा करते हैं कि जो साधुत्व को अंगीकार करके यानी मुण्डित होकर घरबार छोड़कर अनगारधर्म को स्वीकार करके प्रवजित हो गए हैं, उनकी हम जीवनपर्यन्त हिंसा नहीं करेंगे, परन्तु जो गृहस्थ हैं, उनकी हिंसा का हम जीवनपर्यन्त त्याग
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