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सप्तम अध्ययन : नालन्दीय
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कोई भी वह पर्याय नहीं है, जिसको न मारकर श्रावक अपने एक प्राणी को न मारने त्याग को भी सफल कर सके (कस्स ण तं हे) उसका कारण क्या है ? (संसारिया खलु पाणा) प्राणि वर्ग परिवर्तशील हैं। (थावरा वि पाणा थावरत्ताए पच्चायंति) इसलिए कभी स्थावर प्राणी त्रस हो जाते हैं। (तसावि पाणा थावरत्ताए पच्चायंति)
और कभी त्रस प्राणी भी स्थावर हो जाते हैं। (थावरकायाओ विष्पमुच्चमाणा सव्वे तसकायंसि उववज्जति, तसकायाओ विप्पमुच्चमाणा सव्वे थावरकायंसि उववज्जति) वे सबके सब स्थावरकाय को छोड़कर त्रसकाय में उत्पन्न होते हैं और त्रसकाय को छोड़कर स्थावरकाय में उत्पन्न होते हैं । (तेसि च णं थावरकायंसि उववन्नाणं ठाणमेयं धत्तं) वे सबके सब स्थावरकाय में उत्पन्न होने वाले जीव तब श्रावकों के घात के योग्य हो जाते हैं ।
(सवायं भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्त एवं वयासी) भगवान् गौतम स्वामी ने वादसहित पेढालपूत्र से इस प्रकार कहा- (णो खलु आउसो उदया अस्माकं वत्तबएणं तुब्भं चेव अणुप्पवादेण) हे आयुष्मन् उदक ! हमारे वक्तव्य के अनुसार यह प्रश्न नहीं उठता, किन्तु आपके वक्तव्य के अनुसार उठ सकता है । (अस्थि णं से परिवाए जेणं समणोवासगस्स सव्वपाहि, सवभूएहि, सव्वजीवेहि सव्वसत हि दंडे निक्खित्ते भवइ) परन्तु आपके सिद्धान्तानुसार भी यह पर्याय अवश्य है, जिसमें श्रमणोपासक सब प्राणी भूत, जीव और सत्त्वों के घात का त्याग कर सकता है। (कस्स णं त हेउ ?) इसका कारण क्या है ? (संसारिया खलु पाणा) प्राणिगण परिवर्तनशील हैं । (तसा वि पाणा थावरत्ताए पच्चायंति, थावरावि पाणा तसत्ताए पच्चयंति) इस लिए स्थावर प्राणी, भी त्रस रूप में उत्पन्न हो जाते हैं और कभी त्रस प्राणी भी स्थावर रूप में उत्पन्न हो जाते हैं । (तसकायाओ बिप्पमुच्चमाणा सव्वे थावरकायंसि उववज्जंति, थावरकायाओ विप्पमुच्चमाणा सव्वे तसकायंसि उववज्जति) वे सब त्रसकाय को छोड़कर स्थावरकाय में उत्पन्न हो जाते हैं, तथैव कभी स्थावर को छोड़कर सब त्रसकाय में भी उत्पन्न हो जाते हैं। (तेसिं च णं तसकायंसि उववनाणं ठाणमेयं अघतं) वे सब जब त्रसकाय में उत्पन्न होते हैं, तब वह स्थान श्रावकों के लिए घात के योग्य नहीं होता । (ते पाणा वि वुच्चंति, ते तसा वि वुच्चंति से महा काया ते चिरटिइया) वे प्राणी भी कहलाते हैं, वे त्रस भी कहलाते हैं, वे विशाल शरीर वाले और चिरकाल तक स्थित रहने वाले होते हैं । (ते बहुयरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ) वे प्राणी बहुत हैं, जिनमें श्रमणोपासक का प्रत्याख्यान सफल होता है । (ते अप्पयरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स अपच्चक्खापं भवइ) तथा उस समय वे प्राणी होते ही नहीं, जिनके लिए श्रमणोपासक का प्रत्याख्यान नहीं होता (से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्टियस्स पडिविरयस्स जन्नं तुब्भे वा अन्नो वा एवं वदह णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाएइवायविरए वि दंडे णिक्खित्ते) इस प्रकार वह श्रावक महान् त्रसकाय के घात से शान्त तथा विरत होता
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