________________
३७२
सूत्रकृतांग सूत्र
और पत्नी दोनों ही स्त्रीजाति की होने पर भी लोक में माता अगम्य और पत्नी गम्य मानी जाती है। इसी तरह प्राणी के अंग होने पर भी अन्न और मांस में रात-दिन का अन्तर है । अन्न के तुल्य मांस को भक्ष्य बताना मिथ्या है।
__ आर्द्र क मुनि ने बौद्धों के उस अपसिद्धान्त का खण्डन करते हुए कहाआपका यह कथन भी बिलकुल निराधार एवं मिथ्या है कि जो पुरुष बोधिसत्त्व के तुल्य दो हजार भिक्षुकों को प्रतिदिन भोजन कराता है, वह उत्तम गति को प्राप्त करता है। बल्कि ऐसे मांसाहारी भिक्षुओं को भोजन कराने वाला असंयमी होता है, उसके हाथ रक्त से सने रहते हैं, इसलिए वह परलोक में अनार्य लोगों की गति को प्राप्त करता है, वह उत्तम साधुजनों द्वारा निन्दित होता है। बौद्धभिक्षुओं की आहार की रीति भी बड़ी विचित्र है। बौद्धभिक्षुओं के भोजन के लिए उनके अनुयायी एक मोटे-ताजे हृष्ट-पुष्ट भेड़े को मारते हैं, तत्पश्चात् उसके मांस को निकालकर वे नमक और तेल में उसे पकाते हैं । फिर पिप्पली आदि द्रव्यों से उसे बघार देकर तैयार करते हैं। वह मांस बौद्धभिक्षुओं के भोजन के योग्य समझा जाता है। ऐसे मांस को खाने वाले अनार्यकर्मकारी बौद्धभिक्षुओं का यह कथन कितना बेहूदा है कि हम लोग मांस का भक्षण करते हुए भी पाप के भागी नहीं होते। इससे बढ़कर अज्ञान
और क्या हो सकता है ? अत: ये लोग अज्ञानी, अनार्य और रसलोलुप हैं। ऐसे पापकर्मा लोगों को भोजन कराने से कैसे सुगति-गमन या सुफल हो सकता है ? वास्तव में जो लोग मांसाहार करते हैं, वे पुरुष अनार्य हैं, उन्हें पाप-पुण्य का बिलकुल भी ज्ञान नहीं हैं । एक तो मांस हिंसा के बिना मिलता नहीं, दूसरे वह स्वभाव से ही अपवित्र है, रौद्रध्यान का हेतु है, रक्त आदि दूषित पदार्थों से पूर्ण होता है तथा अनेक कीड़ों का घर है । फिर मांस बहुत ही दुर्गन्धित, शुक्रशोणित से उत्पन्न तथा सज्जनों द्वारा निन्दित है । ऐसे मांस को जो खाता है, वह व्यक्ति राक्षस के समान है और नरकगामी है । अतः विचार करने पर मालूम होता है कि मांसभोजी व्यक्ति अपनी आत्मा को स्वयमेव नरक में डालने के कारण आत्मद्रोही है, आत्मकल्याण-द्वेषी है।
मांस का अर्थ ही यह है कि जिसके मांस को मैंने इस भव में खाया है, वह प्राणी परभव में मेरा मांस खाएगा। इसलिए मांसभक्षी मोक्षगामी या मोक्षमार्ग का आराधक नहीं है। जो पुरुष कर्तव्य अकर्तव्य का विवेक रखते हैं, जो ज्ञानी महात्मा हैं, वे मांस खाने की इच्छा भी नहीं करते तथा इसके अनुमोदन को भी पाप समझते हैं । अतः बौद्धों का यह आचरण अच्छा नहीं है।
___ जो पुरुष मुमुक्षु हैं, उन्हें मांसभक्षण से तो दूर रहना ही चाहिए उद्दिष्टभक्त का भी त्याग करना चाहिए, क्योंकि वह (आहार) छह काया के जीवों का आरम्भ करके तैयार किया जाता है । वह आहार यदि साधु के लिए बनाया गया हो तो साधु को छह काया के जीवों के आरम्भ का अनुमोदक बनना पड़ता है। इसलिए सुसाधु ऐसे आहार को नहीं लेते । भगवान् महावीर के शिष्य ऋषिगण सर्वसावद्य प्रवृत्तियों
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org