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________________ ३५० सूत्रकृतांग सूत्र आश्रवों और १७ प्रकार के संयम का अपदेश देते हैं । संवरयुक्त पुरुष को विरति प्राप्त होती है इसलिए वे विरति का उपदेश देते हैं। विरति से निर्जरा और निर्जरा से मोक्ष होता है इसलिए वे निर्जरा और मोक्ष का उपदेश देते हैं। भगवान् कर्मों से दूर रहने वाले परमतपस्वी हैं । अतः उन पर पापकर्मों के करने का आरोप लगाना मिथ्या है। अगली गाथा मे गोशालक अपने धर्म की महत्ता बताने हेतु आर्द्रकमुनि से कहता है और आर्द्र कमुनि उसका प्रतिवाद करते हैं मूल पाठ सीओदगं सेवउ बीयकायं, आहायकम्मं तह इत्थियाओ। एगंतचारिस्सिह अम्ह धम्मे, तवस्सिणो णाभिसमेइ पावं ॥७॥ सीओदगं वा तह बीयकायं, आहायकम्मं तह इत्थियाओ। एयाइं जाणं पडिसेवमाणा, अगारिणो अस्समणा भवंति ॥८॥ सिया य वीओदगइत्थियाओ, पडिसेवमाणा समणा भवंतु। अगारिणोऽवि समणा भवंतु, सेवंति उ तेऽवि तहप्पगारं ॥६॥ जे यावि बीओदगभोइ भिक्खु, भिक्खं विहं जायंति जीवियट्ठी। ते गाइसंजोगमविप्पहाय कायोवगा गंतकरा भवंति ॥१०॥ संस्कृत छाया शीतोदकं सेवतु बीजकायम्, आधाकर्म तथा स्त्रियः । एकान्तचारिण इहाऽस्मद्ध में तपस्विनो नाभिसमेति पापम् ॥ ७ ॥ शीतोदकं वा तथा बीजकायं, आधाकर्म तथा स्त्रियः। एतानि जानीहि प्रतिसेवमाना: अगारिणोऽश्रमणाः भवन्ति ॥ ८ ॥ स्याच्च बीजोदक स्त्रियः प्रतिसेवमाना: श्रमणा: भवन्तु । अगारिणोऽपि श्रमणा भवन्तु, सेवन्ति तु तेऽपि तथाप्रकारम् ॥ ६ ॥ ये चाऽपि बीजोदक भोजिनो भिक्षवः, भिक्षाविधि यान्ति जीवितार्थिनः । ते ज्ञातिसंयोगमपि प्रहाय कायोपगाः नान्तकराः भवन्ति ॥ १० ॥ अन्वयार्थ गोशालक कहता है-(सीओदगं बीयकायं आहायकम्मं तह इत्थियाओ) कच्चा (सचित्त) जल, बीजकाय, आधाकर्मयुक्त आहारादि, तथा स्त्रियों का (सेवउ) भले ही सेवन करता हो (इह अम्ह धम्मे एगंतचारिस्स तवस्सिणो पावं णाभिसमेइ) परन्तु जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003600
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1981
Total Pages498
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size23 MB
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