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[सूत्रकृतांगसूत्र : द्वितीय श्रु तस्कन्ध]
विषय-सूची प्रथम अध्ययन : पुण्डरीक
१-१०५ अध्ययन का संक्षिप्त परिचय, पुष्करिणी के मध्य में खिला हुआ एक श्वेतकमल, उत्तम श्वेतकमल को पाने में असफल चार पुरुष, उत्तम श्वेतकमल को पाने में सफल भिक्षु, दृष्टान्त का अर्थघटन, तज्जीवतच्छरीरवादी : प्रथम व्यक्ति, दूसरा पंचमहाभूतिकपुरुष : स्वरूप और विश्लेषण, ईश्वरकारणवादी तृतीय पुरुष : स्वरूप और विश्लेषण, चतुर्थ पुरुष नियतिवादी : एक विश्लेषण, भिक्षाचर्या के लिए उद्यत साधु का यथार्थ चिन्तन, गृहस्थ तथा श्रमण-माहन एवं जैन मुनियों के आचार में अन्तर, पंचम पुरुष : भिक्षु का स्वरूप,
विश्लेषण । द्वितीय अध्ययन : क्रियास्थान
१०६-२१६ अध्ययन का संक्षिप्त परिचय, संसार के समस्त जीव : इन्हीं तेरह क्रियास्थानों में, अर्थदण्डप्रत्यय क्रियास्थान का निरूपण, अनर्थदण्ड : क्या, कैसे और किसके लिए ? हिंसादण्डप्रत्ययिक : स्वरूप
और विश्लेषण, चतुर्थ क्रियास्थान : अकस्माद्दण्डप्रत्ययिक, पञ्चम क्रियास्थान : दृष्टिविपर्यासदण्डप्रत्यय, छठा क्रियास्थान : मृषाप्रत्ययिक, सप्तमः क्रियास्थान : अदत्तादानप्रत्ययिक, आठवाँ क्रियास्थान : अध्यात्मप्रत्ययिक, नौवां क्रियास्थान : मानप्रत्ययिक, दसवाँ क्रियास्थान : मित्रदोषप्रत्ययिक, ग्यारहवाँ क्रियास्थान : मायाप्रत्ययिक, बारहवाँ क्रियास्थान : लोभप्रत्ययिक, तेरहवाँ क्रियास्थान : ऐर्यापथिक, प्रतिकूल विद्याओं के प्रयोग से प्रतिकूल गति, महापापियों के विभिन्न महापातककर्म और प्रसिद्धि, प्रथम स्थान : अधर्मपक्ष का स्वरूप और विश्लेषण, द्वितीयस्थान : धर्मपक्ष का स्वरूप और विश्लेषण, तृतीय स्थान : मिश्रपक्ष का स्वरूप और विश्लेषण, ये अधर्मस्थान के अधिकारीपुरुष !, नरक और वहाँ का वातावरण, अधर्मपक्षीय नरक
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