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पचम अध्ययन : अनगारश्रुत-आचारश्रुत
णत्थि माया व लोभे वा, णेवं सन्न निवेसए । अस्थि माया व लोभे वा; एवं सन्न निवेसए ॥२१॥ णत्थि पेज्जे व दोसे वा, णेवं सन्न निवेसए । अस्थि पेज्जे व दोसे वा, एवं सन्न निवेसए ॥२२॥
संस्कृत छाया नास्ति क्रोधश्च मानो वा, नैवं संज्ञां निवेशयेत् । अस्ति क्रोधश्च मानौं वा, एवं संज्ञा निवेशयेत् ॥ २० ॥ नास्ति माया वा लोभो वा, नैवं संज्ञां निवेशयेत् । अस्ति मायां वा लोभो वा, एवं संज्ञां निवेशयेत् ॥ २१ ॥ नास्ति प्रेम वा द्वेषो वा, नैवं संज्ञां निवेशयेत् । अस्ति प्रेम वा द्वेषो वा, एवं संज्ञां निवेशयेत् ।। २२ ।।
अन्वयार्थ (कोहे व माणे वा पत्थि एवं सन्नं न निवेसए) कोध और मान नहीं हैं, ऐसी मान्यता नहीं रखनी चाहिए। (कोहे व माणे वा अत्थि, एवं सन्नं निवेसए) किन्तु क्रोध और मान हैं, ऐसी मान्यता रखनी चाहिए ॥ २० ॥
(माया व लोभे वा पत्थि एवं सन्नं न निवेसए) माया और 'लोभ नहीं हैं, ऐसी बुद्धि नहीं रखनी चाहिए, (माया व लोभे वा अस्थि एवं सन्नं निवेसए) लेकिन माया और लोभ हैं, ऐसी बुद्धि रखनी चाहिए ।। २१ ॥
(पेज्जे दोसे वा णत्थि एवं सन्नं न निवेसए) राग और द्वेष नहीं हैं, ऐसी विचारणा नहीं रखनी चाहिए, (पेज्जे व दोसे वा अत्थि एवं सन्नं निवेसए) किन्तु राग और द्वेष होते हैं, ऐसी बुद्धि रखनी चाहिए।
व्याख्या क्रोध, मान, माया, लोभ, राग और द्वेष के अस्तित्व का यथार्थ ज्ञान इन तीन गाथाओं में क्रोधादि ६ के अस्तित्व एवं नास्तित्व पर विचार किया गया है। साधक के जीवन में क्रोधादि चुपके से प्रविष्ट हो जाएँ तो बहुत बड़ा अनर्थ पैदा कर देते हैं, जन्म-मरण का चक्र बढ़ा देते हैं, अतः साधक अगर इनके अस्तित्व से इन्कार करके इनसे बेखबर रहेगा तो उसकी साधना ही चौपट हो जायेगी। इसी दृष्टि से शास्त्रकार ने कहा है-क्रोधमानादि हैं और वे साधक-जीवन में अनर्थ पैदा करते हैं, यह मानकर ही साधक को सावधान होकर चलना चाहिए।
अपने या दूसरे पर अप्रीति करना क्रोध है। गर्व करना मान कहलाता है। कुछ लोगों का कहना है कि क्रोध और मान का कोई अस्तित्व नहीं है। आत्मा अपने
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