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सूत्रकृतांग सूत्र
चाहिए । वैक्रिय शरीर में विविध रूप बनाने की शक्ति होती है । यह देवों और नारकों को जन्म से ही प्राप्त होता है, मनुष्यों में से किसी को विशेष प्रकार को साधना या तपश्चर्या से ही प्राप्त होता है । औदारिक, वैक्रिय या आहारक इन तीनों शरीरों में से प्रत्येक के साथ तेजस और कार्मण शरीर भी अवश्य होते हैं । कार्मण शरीर का यहाँ ग्रहण किया ही है, और कार्मण के साथ तैजस शरीर का होना अवश्यम्भावी है, क्योंकि ये दोनों सहचारी शरीर हैं । अतः इन पाँचों शरीरों में परस्पर एकत्व की शंका किसी को हो सकती है, इसीलिए शास्त्रकार ने इनमें परस्पर एकत्व के कथन को अनुपयुक्त एवं अनाचार बताया है । आशय यह है कि औदारिक शरीर ही तैजस एवं कार्मण शरीर है तथा वैक्रिय शरीर हो आहारक है, ऐसा एकान्त अभेदात्मक वचन नहीं कहना चाहिए, तथा इन शरीरों में परस्पर भिन्नता ही है ऐसा भी नहीं कहना चाहिए। इस प्रकार इन शरीरों में परस्पर एकान्तअभेद एवं एकान्तभेद के निषेध का कारण यह है कि इन शरीरों के कारणों में भेद है, अतः इनमें एकान्त अभेद नहीं है। जैसे कि औदारिक शरीर के कारण उदार पुद्गल हैं, कामण शरीर के कारण कर्म तथा तैजस शरीर के कारण तेज हैं। इसलिए इनके कारणों में भिन्नता होने से इनमें एकान्त अभेद संभव नहीं है । इसी तरह इनमें एकान्ततः भेद (भिन्नता) भी संभव नहीं है। क्योंकि ये सब शरीर एक ही देश और एक ही काल में उपलब्ध होते हैं। गृह-दारादि की तरह भिन्न-भिन्न देश-काल में ये उपलब्ध नहीं होते, तथा सभी शरीर पुद्गल परमाणुओं से निर्मित हैं । अतः इन दोनों बातों को देखते हुए इन शरीरों में कथञ्चिद् भेद और कथञ्चित् अभेद है, यही अनेकान्तात्मक वचन कहना चाहिए । शास्त्रकार कहते हैं-यही अनुभवसिद्ध, निर्दोष व्यावहारिक राजमार्ग है। ऐसी स्थिति में इन्हें एकान्त भिन्न या एकान्त अभिन्न कहना अनाचार-सेवन करना है। सब में सर्वशक्तियां विद्यमान हैं या अविद्यमान ?
___ इस गाथा में शास्त्रकार ने दूसरी बात यह कही है कि सभी वस्तुओं में सर्व शक्तियाँ विद्यमान हैं, अथवा नहीं हैं, ऐसा एकान्त वचन नहीं कहना चाहिए ।
सांख्यमत का कथन है -जगत् के सब पदार्थ प्रकृति से उत्पत्र हुए हैं, इसलिए प्रकृति ही समस्त पदार्थों का उपादान कारण है । यह 'प्रकृति' एक ही है, इसलिए सभी पदार्थ सर्वात्मक हैं और 'सब पदार्थों में सबकी शक्ति विद्यमान है।' यह एक कथन है । दूसरे मतवादियों का कथन है कि देश, काल और स्वभाव का भेद होने से सभी पदार्थ सबसे भिन्न है एवं सभी पदार्थ अपने-अपने स्वभाव में स्थित हैं तथा उनकी शक्ति भी परस्पर विलक्षण (भिन्न) है इसलिए सब पदार्थों में सबकी शक्ति नहीं है।
__ ये दोनों एकान्त मान्यताएँ हैं । इन दोनों के अनुसार एकान्त कथन करना उचित नहीं है।
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