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सूत्रकृतांग सूत्र
जिस तरह एकान्तनित्यतावाद अयुक्त, असम्मत एवं लौकिक--पारलौकिक व्यवहारों से विरुद्ध है, इसी तरह एकान्तअनित्यवाद भी लोकविरुद्ध है । यदि आत्मा आदि समस्त पदार्थ एकान्त क्षणिक, यानी अनित्य हैं तो लोग भविष्य में उपभोग करने के लिए घर, स्त्री, धन-धान्य आदि का संग्रह क्यों करते हैं ? तथा वे बौद्धगण भी बौद्ध भिक्षुदीक्षाग्रहण एवं विहार आदि क्यों करते हैं ? क्योंकि जब आत्मा आदि कोई पदार्थ स्थिर है ही नहीं, तब बन्ध और मोक्ष किसका होगा ? किसको साधना या धर्माचरण का फल मिलेगा? जो धर्माचरण या साधना करने वाला था, वह व्यक्ति तो अनित्य होने के कारण नष्ट हो गया ।
___ अतः इन दोनों ही एकान्तनित्य या एकान्तअनित्य मतपक्षों को मौनीन्द्र प्रवचन से विरुद्ध, लोकव्यवहार से असिद्ध एवं अनाचार (अनाचरणीय) समझना चहिए।
___ इसलिए "उत्पाद-व्यय-ध्रौव्ययुक्त सत्" उत्पत्ति, स्थिति (ध्र वता) और व्ययरूप जो पदार्थ का स्वरूप है, वही ठीक है और जैनदर्शनसम्मत है । एक आचार्य लोकव्यवहार से इसे स्पष्ट करते हुए कहा है
घट-मौलि-सुवर्णार्थी, नाशोत्पादस्थितिष्वयम् ।
शोक-प्रमोद-माध्यस्थ्यं जनो याति सहेतुकम् ॥ किसी राजकन्या के पास एक सोने का घड़ा था। राजा ने सुनार से उस घड़े को गलवाकर राजकुमार के लिए मुकुट बनवाया। इससे राजकन्या को यह जानकर दुःख हुआ कि मेरा सोने का घड़ा नष्ट हो गया, राजकुमार को बड़ा हर्ष हुआ, क्योंकि उसे सोने का मुकुट मिल गया। और उस राजा को न तो हर्ष ही हुआ और न ही शोक हुआ, क्योंकि उसका सोना तो अवस्था में परिवर्तन होने पर भी ज्यों का त्यों बना रहा । चाहे मुकुट के रूप में रहे, चाहे घड़े के रूप में । यदि पदार्थ एकान्तनित्य ही हो तो राजकन्या को शोक (दु:ख) नहीं होना चाहिए और अगर पदार्थ एकान्त अनित्य ही हो तो राजकुमार को हर्ष किस बात का होता? अतः पदार्थ कथञ्चित् नित्य और कथञ्चित् अनित्य है, यह पक्ष ही सत्य है । ऐसा मानने पर घड़े को नष्ट हुआ जानकर राजकुमारी को दुःख होना और नवीन मुकुट बना यह जानकर राजकुमार को हर्ष होना तथा सोने का सोना ही बने रहना जानकर राजा को मध्यस्थ होना, ये सब बातें बन जाती हैं । अतः एकान्तअनित्यता को व्यवहारविरुद्ध, सिद्धान्त से असम्मत तथा अनाचार समझना चाहिए ।
सारांश समग्र लोक को प्रमाण द्वारा अनादि-अनन्त मानकर, यह शाश्वत ही है, या अशाश्वत ही है, ऐसी एकान्तबुद्धि न रखे। क्योंकि एकान्तनित्य या एकान्तअनित्य इन दोनों पक्षों से शास्त्रीय और लौकिक व्यवहार नहीं
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