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तृतीय अध्ययन : आहार - परिज्ञा
अचित्त शरीर में अग्निकाय के रूप में उत्पन्न होते हैं । (ते जीवा तेसि णाणाविहाणं तस्थावराणं सिणेहमाहारेंति) वे जीव उन विभिन्न प्रकार के त्रस और स्थावर प्राणियों के स्नेह का आहार करते हैं । (ते जीवा आहारेति पुढवीसरीरं जाव) वे जीव पृथ्वीकाय आदि का भी आहार करते हैं । ( तेसि तसथावरजोणियाणं अगणीणं सरीरा raण जावखायं ) उन तस्थावरयोनिक अग्निकायों के दूसरे और भी शरीर बताये गये हैं जो नाना वर्ण, गन्ध आदि के होते हैं । ( सेसा तिनि आलावगा जहा उदगाणं) शेष तीन आलापक ( बोल) उदक के समान समझ लेना चाहिए ।
( अह अवरं पुरक्खायं ) इसके पश्चात् श्री तीर्थंकरदेव ने दूसरी बात बताई है । ( इगइया सत्ता णाणाविहजोणियाणं जाव कम्मणियाणेणं तत्थवुक्कमा णाणाविहाणं तस्थावराणं पाणाणं सरीरेसु सचित्तेसु वा अचित्तेसु वा वाउकायत्ताए विउट्टंति) इस जगत् में कितने ही जीव पूर्वजन्म में नाना प्रकार की योनियों में उत्पन्न होकर वहाँ किये हुए अपने कर्म के प्रभाव से त्रस और स्थावर प्राणियों में सचित्त और अचित्त शरीर में वायुकाय के रूप में उत्पन्न होते हैं । ( जहा अगणीणं तहा चत्तारि गमा भाणियव्वा ) यहाँ भी चार आलापक अग्नि के समान ही कहने चाहिए ।
व्याख्या
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afroatfar और वायुकायिक जीवों के आहारादि का निरूपण
इस सूत्र में शास्त्रकार ने अनेक प्रकार के त्रस स्थावर जीवों के सचिनअचित शरीरों में अग्निकाय एवं वायुकाय के रूप में उत्पत्ति का वर्णन किया है । विभिन्न प्रकार के सस्थावर प्राणियों के सचित्त या अचित्त शरीरों में अनिकाय के रूप में उत्पन्न होते हैं । त्रस और स्थावर प्राणियों के सचित्त शरीरों में जो अग्नि होती है, उसमें प्रत्यक्ष प्रमाण यह है - हाथी, घोड़ा, भैंस आदि जब परस्पर लड़ते हैं, तब अनेक सींगों में से आग निकलती देखी जाती है । तथा अचित्त हड्डियों के परस्पर रगड़ने से चिनगारियाँ निकलती हैं । इसी तरह द्वीन्द्रिय आदि के शरीरों में अग्नि की लपटें देखी जाती हैं । सचित्त- अचित्त वनस्पतिकाय एवं पत्थर आदि के संघर्ष में भी आग निकलती है । वे अग्निकाय के जीव उन शरीरों में उत्पन्न होकर उनके स्नेह का आहार करते हैं । शेष तीन आलापक पूर्ववत् समझ लेना चाहिए । इसके पश्चात् वर्णन है— कई जीव अनेक प्रकार के तस स्थावर प्राणियों के सजीव-निर्जीव शरीर में अपने पूर्वकर्मवश वायुकाय के रूप में उत्पन्न होते हैं । इनके भी अग्निकाय के समान चार आलापक होते हैं । शेष बातें पूर्ववत् जान लेनी चाहिए ।
मूल पाठ
अहावरं पुरक्खायं इहेगइया सत्ता णाणाविहजोणिया जाव कम्म
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