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द्वितीय अध्ययन : क्रियास्थान
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ठाणस्स अधम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिए। तत्थ णं इमाइं तिन्नि तेवट्ठाई पावादुयसयाइं भवन्तीति मक्खायाइं; तं जहा-किरियावाईणं अकिरियावाईणं अन्नाणियवाईणं वेणइयवाईणं तेऽवि परिनिव्वाणमाहंसु तेऽवि मोक्खमाहंसु तेऽवि लवन्ति, सावगा! तेऽवि लवन्ति सावइत्तारो ॥सू० ४०॥
संस्कृत छाया . एवमेव समनुगम्यमाना: अनयोरेव द्वयोः स्थानयोः सम्पतन्ति, तद्यथा -धर्मे चैव अधर्मे चैव, उपशान्ते चैव अनुपशान्ते चैव । तत्र योऽसौ प्रथमस्य स्थानस्याधर्मपक्षस्य विभंग एवमाख्यातः तत्रामूनि त्रीणि त्रिषष्ट्यधिकानि प्रावादुकशतानि भवन्तीत्याख्यातानि । तद्यथा--क्रियावादिनामक्रियावादिनामज्ञानवादिनां वैनयिकवादिनाम् । तेऽपि परिनिर्वाणमाहुः, तेऽपि मोक्षमाहुः, तेऽपि लपन्ति श्रावकान्, तेऽपि लपन्ति श्रावयितारः ।। ४० ।।
अन्वयार्थ (एवमेव समणुगम्ममाणा इमेहि चेव दोहि ठाणेहि समोअरंति) संक्षेप में विचार करने पर ये तीनों पक्ष इन दो ही स्थानों में समाविष्ट हो जाते हैं, (तं जहाधम्मे चेव अधम्मे चेव, उवसंते चेव अणुवसन्ते चेव) यथा धर्म और अधर्म में, तथा उपशान्त और अनुपशान्त में। (इन दोनों स्थानों में ही सबका समावेश हो सकता है) (तत्थ णं जे से पढमस्स ठाणस्स अधम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिए, तत्थ णं इमाइं तिन्नि तेवट्ठाई पावादुयसयाई भवंतीति मक्खायाई) पहले जो अधर्मस्थान का विचार पूर्वोक्त प्रकार से किया गया है, उसमें ३६३ प्रावादुकों (मतवादियों) का समावेश हो जाता है, यह पूर्वाचार्यों ने कहा है। (तं जहा-किरियावाईणं अकिरियावाईणं अन्नाणियवाईणं वेणइयवाईणं) वे इस प्रकार हैं-क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी। (तेऽवि परिनिव्वाणमाहंसु) वे भी परिनिर्वाण का प्रतिपादन करते हैं, (तेऽवि मोक्खमाहंसु) वे भी मोक्ष की बात करते हैं। (तेऽवि लवंति सावगा, तेऽवि लवंति सावइत्तारो) वे भी अपने धर्म का उपदेश अपने श्रावकों को करते हैं, तथा वे भी अपने धर्म को सुनाते हैं।
व्याख्या
अधर्मपक्ष में ३६३ मतवादियों का समावेश पूर्व सूत्रों में बताये हुए तीनों पक्षों में से धर्म और अधर्म इन दो पक्षों में तीनों का समावेश हो जाता है। इसलिए वस्तुतः धर्म और अधर्म दो ही पक्ष हैं; क्योंकि मिश्रपक्ष धर्म और अधर्म दोनों से मिश्रित होने के कारण इन्हीं दो के अन्तर्गत है ।
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