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द्वितीय अध्ययन : क्रियास्थान
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इतने क्रूर, रौद्र और साहसी होते हैं कि अपने जीवन में धोखेबाजी, जालसाजी, कूटकपट, माया, व्यवसाय में झूठ, तोल-नाप में गड़बड़ी आदि के किसी अवसर को नहीं चूकते । वे सदैव क्रोध, मान, माया और लोभ में वृद्धि करते रहते हैं । वे राग, द्वेष, दोषारोपण, पैशुन्य, परनिन्दा, अधर्म में रुचि, धर्म में अरुचि, दम्भ, मिथ्यात्व आदि दोषों का जीवन भर त्याग नहीं कर सकते । वे आजीवन शरीर शृंगार करने, उत्तमोत्तम वस्त्राभूषणों से सुसज्जित रहने और उत्तम रूप, रस, गन्ध, स्पर्श और शब्दादि विषयों का सेवन करने में दत्त-चित्त रहते हैं। वे इन विषयों की प्राप्ति के लिए अहर्निश वेशभूषा और भाषा तथा देश को बदलते रहते हैं। वे जीवन भर विविध वाहनों, यानों, गाड़ियों, शय्या, विविध भोग्य साधनों और स्वादिष्ट भोजनों की वृद्धि करने में लगे रहते हैं।
इसी प्रकार वे सदा खरीदने-बेचने में तत्पर रहकर माशा, आधा माशा और तोला आदि का अभ्यास करते रहते हैं तथा सोना, चाँदी, धन-धान्य, मणि, मोती, शंख, शिला, मूंगा आदि कीमती पदार्थों के जटाने में आजीवन लगे रहते हैं। इसी प्रकार जो आजीवन समस्त आरम्भ-समारम्भों, करने-कराने, भोजन पकाने-पकवाने से सन्तुष्ट नहीं होते । समस्त प्रकार की सावध प्रवृत्तियों में वे रचे-पचे रहते हैं, तथा जीवन भर प्राणियों को कूटने-पीटने, धमकाने, मारने, वध करने और बंधन में डालने से निवृत्त नहीं होते । वे अनार्यों द्वारा आचरित सभी दुष्कर्मों का सेवन करते हैं, तथा उन सभी अकार्यों को भी स्वयं करते-कराते हैं, जिनमें प्राणियों को बिना ही अपराध के संताप एवं दण्ड दिया जाता है, तथा जो कार्य सावध हैं और बोधिवीज का नाश करने वाले हैं । ऐसे व्यक्ति अधर्मस्थान में स्थित हैं, यह समझ लेना चाहिए ।
इस जगत में बहुत से लोग ऐसे होते हैं, जो बिना ही अपराध के प्राणियों को दण्ड देते हैं। जैसे कोई क्रूर पुरुष अपने और दूसरों के भोजन के लिए चावल, गेहूँ, मूग आदि अन्नों को अनाप-शनाप मात्रा में पकाकर दूसरे प्राणियों को दण्ड देता रहता है, वैसे ही ये भी क्रूर बनकर बिना ही अपराध के तीतर, बटर, बत्तक, सूअर, ग्राह आदि पशु-पक्षियों का वध करके उन्हें दण्ड देते रहते हैं। इन पुरुषों का बाह्य परिवार इस प्रकार है-दासीपुत्र, संदेशवाहक, वेतनभोगी नौकर-चाकर, बटाई या हिस्से पर खेती करने वाला, अन्य कर्मचारीगण आदि । ये लोग भी इनके समान ही अत्यन्त निर्दय होते हैं। किसी के थोड़े-से अपराध को अधिक बताकर उसे घोर दण्ड दिलवाते हैं, तथा इनसे भी जब जरा-सा अपराध हो जाता है तो इनका क्रू र स्वामी इन्हें भी निर्दयतापूर्वक कठोर दण्ड देता है। वह दण्ड इस प्रकार हैडंडों से पीटना, सिर मूड देना, लातों और मुक्कों से मारना, मुश्क बँधवाना, हाथों और पैरों में हथकड़ियाँ-बेड़ियाँ डलवा देना, कैद करके जेलखाने में डाल देना, हाथ,
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