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सूत्रकृतांग सूत्र
करवाते हैं। चाहे करोड़ों प्राणियों की हत्या क्यों न हो जाये, वे अपने कामभोगों में किसी प्रकार की कमी नहीं आने देते । शास्त्रकार ऐसे महापापियों की विलासिता की कुछ झाँकी देते हैं-वे प्रातःकाल उठकर स्नान करते हैं, फिर मंगलार्थ सुवर्ण, दर्पण, दही, अक्षत, मृदंग आदि मांगलिक पदार्थों का स्पर्श करते हैं। तत्पश्चात् देवार्चन करके अपने अंगों पर चंदन आदि का लेप करते हैं और फूलमाला, करधनी, तथा मुकुट आदि आषणों को धारण करते हैं। युवावस्था तथा यथेष्ट भोग-साधनों की प्राप्ति के कारण उनका शरीर अत्यन्त हष्ट-पुष्ट होता है । वे सायंकाल शृगार करके ऊँचे महल में बड़े-से सिंहासन पर जाकर बैठ जाते हैं। वहाँ नवयौवना स्त्रियाँ उन्हें चारों ओर से घेर लेती हैं तथा नृत्य, गीत, वाद्य और हावभावों से उनका मनोरंजन करती हैं। अनेक दीपकों की जगमगाहट में रातभर वे पुरुष नाच, गान, रागरंग एवं मधुर शब्दों में मशगूल रहते हैं । इस प्रकार उत्तमोत्तम भोगोपभोगों का सेवन करते हुए वे अपनी जिंदगी बिताते हैं। जब वे किसी को आदेश देते हैं, तो बिना कहे ही एक साथ ४-५ जीहरिए आकर खड़े हो जाते हैं, और हाथ जोड़कर कहते हैं- "देवानुप्रिय ! बतलाइए, हम आपकी क्या सेवा करें ? कौन-सी वस्तु आपको प्यारी है, जिसे लाकर हम आपकी सेवा में हाजिर करें ? हम क्या कार्य करें ? इत्यादि।"
इस प्रकार अनुचरों से सेवा किये जाते हुए तथा उत्तमोत्तम विषय-भोगों को भोगते देखकर अनार्य लोग उस भोगी को बहुत अच्छा समझते हैं। वे कहते हैं - यह मनुष्य नहीं अपितु देव है, सचमुच यह देवताओं से भी बढ़कर है, देवता का-सा जीवन व्यतीत कर रहा है यह पुरुष । संसार में इसके समान कोई सुखी नहीं है । दूसरे लोग जो इसकी सेवा करते हैं वे भी चैन की बंशी बजाते हैं। अतः यह पुरुष महाभाग्यशाली है । परन्तु जो पुरुष विवेकी और आर्य हैं, वे उस विषय-भोगों के कोड़े को भाग्यवान् नहीं कहते, वे उसे अत्यन्त क्रूर कर्म करने वाला, अत्यन्त धूर्त, अतिस्वार्थी, शरीरासक्त, एवं विषय-प्राप्ति के लिए अत्यन्त पापकर्म करने वाला कहते हैं । तथा वे आर्य पुरुष कहते हैं कि ऐसा मनुष्य नरकगामी, दक्षिणनरक का पथिक, भविष्य में दुर्लभबोधि और कृष्णपक्षी होता है ।।
इस अधर्मपक्ष के अधिकारी वे व्यक्ति भी होते हैं, जो घरबार छोड़कर मोक्षप्राप्ति के लिए दीक्षित होकर भी पूर्वोक्त विषय-सुखों को लालसा रखते हैं, तथा गृहस्थ एवं दूसरे विषयासक्त प्राणी भी इस अधर्मपक्षीय स्थान की कामना करते हैं । वास्तव में यह स्थान विवेकी एवं मोक्षसुखाभिलाषी पुरुष के लिए कथमपि उपादेय या अभीष्ट नहीं है, क्योंकि यह हिंसा, झूठ, कपट आदि दोषों से परिपूर्ण होने के कारण अधर्ममय है। इस स्थान में केवलज्ञान की प्राप्ति नहीं होती, न कर्मबंधन नष्ट होता
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