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सूत्रकृतांग सूत्र
अंतिए धम्म सोच्चा णिसम्म उट्ठाणेणं उट्ठाय वीरा अस्सि धम्मे समुट्ठिया) इस जगत् में उस (पूर्वोक्त गुणसम्पन्न) भिक्षु से धर्म को सुनकर तथा उस पर विचार करके धर्माचरण करने के लिए साधुरूप में उद्यत वीरपुरुष ही इस आर्हत धर्म में उपस्थित (दीक्षित) होते हैं। (जे तस्स भिक्खुस्स अंतिए धम्म सोच्चा णिसम्म सम्मं उठाणेणं उठाए वीरा अस्सि धम्मे समुठ्ठिया ते एवं सव्वोपगया, ते एवं सव्वोवरता, ते एवं सव्वोवसंता ते एवं सव्वताए परिनिव्वुडत्ति बेमि) जो वीर पुरुष उस (पूर्वोक्त गुणयुक्त) साधु से धर्म को सुनकर तथा समझकर धर्माचरण करने को तत्पर होते हुए आर्हत धर्म में उपस्थित (दीक्षित) होते हैं, वे इस प्रकार मोक्ष के सब कारणों को प्राप्त करते हैं, वे सब पापों से विरत होते हैं, वे समस्त कषायों को उपशान्त कर लेते हैं, वे सर्व प्रकार से कर्मों का क्षय करते हैं, यह मैं कहता हूँ। (एवं से भिक्खू धम्मट्ठी धम्मविऊ णियागपडिवन्ने से जहेयं बुइयं अदुवापत्ते पउमवरपोंडरीयं, अदुवा अपत्ते पउमवरपोंडरीयं) इस प्रकार वह भिक्षु धर्मार्थी है (धर्म से ही प्रयोजन रखता है), धर्मवेत्ता है, शुद्ध संयम को प्राप्त किया हुआ है, वह साधु, जैसा कि पहले कहा गया था, पूर्वोक्त पुरुषों में से पाँचवाँ पुरुष है। वह चाहे उत्तम श्वेतकमल को प्राप्त करे या न करे, वही सबसे श्रेष्ठ है । (एवं से भिक्खू परिण्णायकम्मे, परिणायसंगे, परिणायगेहवासे उवसंते समिए सहिए, सया जए से एवं वयणिज्जे) इस प्रकार वह भिक्षु कर्म के रहस्य को, बाह्य-आभ्यन्तर दो प्रकार के सम्बन्धों (ग्रन्थों) को तथा गृहवास के मर्म को जान जाता है, वह जितेन्द्रिय, उपशान्त, पाँच समितियों से सम्पन्न, ज्ञानादि गुणों से युक्त तथा सदा संयम में प्रयत्नशील रहता है, उसे इस प्रकार (आगे कहे जाने वाले विशेषणों से) कहना चाहिए । (तं जहा-समणेति वा माहणेति वा खंतेति वा दंतेति वा गुत्तेति वा मुत्तेति वा इसीति वा मुणीति वा कतीति वा विऊति वा भिक्खूति वा लूहेति वा तोरट्ठीति वा चरणकरणपारविउ ति बेमि) जैसे कि यह श्रमण है या माहन है, अथवा क्षान्त (क्षमाश्रमण) है, अथवा यह दान्त है, वह तीन गुप्तियों से गुप्त है, अथवा मुक्त है, या यह ऋषि है, या मुनि है अथवा कृती है, अथवा विद्वान् है, भिक्षु है, या रूक्ष है, अथवा तीरार्थी है, (संसार-समुद्र को पार करने का अभिलाषी है, तथा मूल-उत्तर गुण (चरण एवं करण) का पारगामी (रहस्य ज्ञाता) है। मतलब यह है कि पूर्वोक्त गुणसम्पन्न साधु को इन विशेषणों में से किसी भी विशेषण से विभूषित किया जा सकता है। इस प्रकार मैं (सुधर्मास्वामी) कहता हूँ।
व्याख्या
पंचम पुरुष : भिक्षु का स्वरूप, विश्लेषण
इस सूत्र में पहले बताये गये पाँच पुरुषों में से पुण्डरीक कमल को प्राप्त करने में सफल पाँचवें पुरुष के स्वरूप का स्पष्ट निरूपण किया है।
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