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प्रथम अध्ययन : पुण्डरीक
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पहले से ही यह ज्ञात होता है कि (इह खलु पुरिसे अन्नमग्नं ममट्ठाए एवं विप्पडिवेदेति तं जहा) इस मनुष्य लोक में पुरुषगण अपने से सर्वथा भिन्न पदार्थों को झूठमूठ ही अपने मानकर ऐसा अभिमान करते हैं, जैसे कि (खेत्तं मे वत्थू मे हिरण्णं मे सुवन्नं मे धणं मे धण्णं मे कंसं मे दूसं मे) यह खेत (या जमीन) मेरा है, यह मकान मेरा है, यह चाँदी मेरी है, या यह सोना मेरा है, यह धन मेरा है, यह धान्य मेरा है, यह कांसा मेरा है, यह लोहा या बढ़िया वस्त्र आदि मेरे हैं, (विउल धणकणगरयणमणिमोत्तियसंखसिलप्पवालरत्तरयणसंतसारसावतेयं) यह प्रचुर धन, यह बहुतसा सोना, ये रत्न, मणि, मोती, शंखशिला, मूंगा, लाल, रत्न आदि उत्तमोत्तम मणि और पैतृक धन मेरे हैं। (सद्दा मे रूवा मे गंधा मे रसा मे फासा मे) ये श्रवण-प्रिय शब्द करने वाले वीणा, वेणु आदि साधन मेरे हैं, ये सुन्दर और रूपवान् आदि पदार्थ मेरे हैं, ये इत्र-तेल आदि सुगन्धित पदार्थ मेरे हैं, ये उत्तमोत्तम स्वादिष्ट रस वाले पदार्थ मेरे हैं, ये कोमल-कोमल स्पर्श वाले तोशक, गद्द आदि मेरे हैं। (एए खलु मे कामभोगा अहमवि एएसि) ये पूर्वोक्त पदार्थ समूह मेरे कामभोग के साधन हैं और मैं इनका उपभोग करने वाला हूँ। (से मेहावी पुव्वमेव अप्पणा एवं समभिजाणेज्जा) वह बुद्धिमान पुरुष पहले से ही (इनका उपभोग करने से पूर्व) ही यह जान-सोच लेता है, कि (इह खलु मम अन्नयरे दुक्खे रोयातके वा समुप्पज्जेज्जा) इस संसार में जब मुझे कोई दुःख या रोग का उपद्रव उत्पन्न होता है, (अणिठे अकंते अप्पिए असुभे अमणुन्ने अमणामे दुक्खे णो सुहे) जो मुझे इष्ट नहीं, मनोहर नहीं है, अप्रिय है, अशुभ है, अमनोज्ञ है, विशेष मनोव्यथा पैदा करता है, दुःखरूप है, सुखरूप नहीं है, (से हंता भयंतारो कामभोगाइं मम अन्नयरं दुक्खं रोयातंकं परियाइयह अणिठें अकंतं अप्पियं असुमं अमणुन्नं अमणामं दुक्खं, णो सुह) हे भय से रक्षा करने वाले मेरे धन-धान्य आदि कामभोगो ! मेरे इस अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अशुभ, अमनोज्ञ अत्यन्त दुःखद, दुःखरूप तथा असुखरूप रोग, आतंक आदि को तुम बाँटकर ले लो। (ताऽहं दुक्खामि वा सोयामि वा जरामि वा तिप्पामि वा पीडामि वा परितप्पामि वा) क्योंकि मैं इस पीड़ा, रोग या आतंक से बहुत दु:खी हो रहा हूँ, मैं चिन्ता या शोक से व्याकुल हूँ, इनके कारण मैं आत्मनिन्दा या पछतावा कर रहा हूँ, मैं कष्ट पा रहा हूँ, बहुत ही वेदना महसूस कर रहा हूँ, (इमाओ अणिट्ठाओ जाव दुक्खाओ, णो सुहाओ, मम अण्णयराओ दुक्खाओ रोयातकाओ पडिमोयह) अतः तुम सब मुझे इस अप्रिय, अनिष्ट, अमनोज्ञ, दुःखरूप या असुखरूप रोग, दुःख या पीड़ा से मुक्त करो। (एवामेव णो लद्धपुव्वं भवइ) तो वे (धन-धान्य आदि या ज्ञातिवर्ग आदि) कामभोग के साधन पदार्थ उक्त प्रार्थना को सुनकर दुःख से मुक्त करा दें, यह कभी नहीं होता। (इह खलु कामभोगा णो ताणाए वा णो सरणाए वा) वास्तव में धन-धान्य और क्षेत्र
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