SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्थान पर जाकर दर्शन किये । स्वामीजी का ओजस्वी-तेजस्वी व्यक्तित्व देखकर मुग्ध हो गये । अध्यात्मचर्चा करके तो बाबाजी का हृदय ही पिघल गया। आपने प्रार्थना की-“महाराज ! मुझे तो अपना शिष्य बना लीजिए।" .. स्वामीजी म. ने कहा- "आप सनातनी साधु हैं, डेरे के महंत हैं । अभी जैन धर्म से परिचय हुआ है । जैन साधुओं के कठोर आचार-विचार का निभा पाना बड़ा कठिन है । अभी अपने मन को तोलिए।" किंतु सच्चा वैराग्य और सच्ची श्रद्धा कभी कष्टों की परवाह नहीं करते। कुछ दिनों बाद स्वामीजी म० अम्बाला पधारे । बाबाजी महाराज अब उनका शिष्यत्व स्वीकार करने को आतुर थे। अतः अपने डेरे का प्रबन्ध किसी अन्य साधु को सौंपा और स्वयं वहाँ से मुक्त होकर अम्बाला स्वामीजी म० के चरणों में आ डटे । स्वामीजी म० ने आपकी दृढ़ भावना, विरक्ति, कष्टसहिष्णुता और ज्ञानपिपासा देखकर कुछ तत्त्वज्ञान, प्रतिक्रमण आदि सिखाया, साधु आचार का ज्ञान कराया और वि० सं० १९४४ माछीवाड़ा (जि० लुधियाना) में आपको जैनदीक्षा दे दी। बाबाजी महाराज ने अपने ज्ञानी गुरुदेव से शास्त्रों का अध्ययन किया । और मन-वचन-कर्म से साधना में जुट गये । आपके जीवन में सेवा का बहुत ही विशिष्ट गुण था। पूज्य श्री मोतीरामजी म० तथा श्रद्धेय स्वामी गणपतराय जी महाराज की आपने तन-मन से एकनिष्ठ होकर सेवा की । इसी कारण स्वामीजी म० की कृपादृष्टि आप पर विशेष रूप में हुई। गुरुकृपा के परिणामस्वरूप श्री बाबाजी महाराज के जीवन में अनेक विशिष्टताएँ आ गईं। श्री बाबाजी महाराज की सेवा-भावना अद्वितीय थी । अपने गुरुजनों की ही नहीं, किंतु हरेक साधु-साध्वी की सेवा में स्वयं को झोंक देते थे। ७० वर्ष की वृद्धावस्था में भी वे वृद्ध-युवा-रुग्ण एवं नवदीक्षित साधु-साध्वियों के लिए आहार लाकर देते, वस्त्र-पात्र-रजोहरण आदि भी उन्हें लाकर देते । हर प्रकार से सभी सन्त-सतियों की सेवा करके वे महान पुण्यों का अर्जन करते । आपकी अक्षर-लिपि भी बहुत सुन्दर थी । कथावाचक सन्तों को भजन आदि लिखकर देते । शास्त्र भी लिखते । आपके अक्षर मोती जैसे सुघड़ थे । स्व० पूज्य गुरुदेव आचार्य सम्राट आत्मारामजी महाराज तो बाबाजी महाराज द्वारा लिखे हुए शास्त्रों का स्वाध्याय किया करते थे । शास्त्र-सेवा के क्षेत्र में श्री बाबाजी महाराज की यह सेवा चिरस्मरणीय रहेगी। श्री बाबाजी महाराज का जीवन अनेक चमत्कारों से भूषित था । आपकी उच्चकोटि की अध्यात्म-साधना, निस्पृहता और सरलता तथा सेवा-भावना के कारण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003600
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1981
Total Pages498
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy