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सूत्रकृतांग सूत्र
समाधि-प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि ब्रह्मचर्य की पूर्णरूपेण रक्षा की जाए तथा परिग्रह के ममत्व से दूर रहा जाए। आगे चलकर शास्त्रकार ने एकान्त क्रियावाद का अनुसरण करने वाले तथा एकान्त अक्रियावाद का अनुसरण करने वाले दोनों को अज्ञानमूलक एवं वास्तविक धर्म एवं समाधि से दूर बताया है।
समाधि के नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव, यों ६ निक्षेप होते हैं। नाम, स्थापना तो सुगम हैं । मनोज्ञ शब्दादि पाँचों विषयों की प्राप्ति होने पर श्रोत्र आदि इन्द्रियों की तृप्ति होना द्रव्यसमाधि है, और इससे विपरीत हो तो, द्रव्यअसमाधि है । अथवा परस्पर अविरोधी दो द्रव्यों या अनेक द्रव्यों के मिलाने से जिसका रस बिगड़ता नहीं, अपितु पुष्ट होता है, उसे भी द्रव्यसमाधि कहते हैं। जैसे दूध और चीनी, तथा साग में मिर्च, नमक, जीरा आदि का मिश्रण करने से रस की पुष्टि होती है । अथवा जिस द्रव्य के खाने-पीने से शान्ति प्राप्त होती है, वह भी द्रव्यसमाधि है । जिस द्रव्य को तराजू पर चढ़ाने से उसके दोनों पलड़े बराबर हों, उसे भी द्रव्यसमाधि कहते हैं । जिस जीव को जिस क्षेत्र में रहने से शान्ति प्राप्त हो, वह क्षेत्र की प्रधानता के कारण क्षेत्रसमाधि है, अथवा जिस क्षेत्र में समाधि का वर्णन किया जाता है, उमे भी क्षेत्रसमाधि कहते हैं । जिस जीव को जिस काल में शान्ति उत्पन्न होती है, वह उसके लिए कालसमाधि है । जैसे शरद् ऋतु में गाय को, रात में उल्लू को और दिन में कौए को शान्ति प्राप्त होती है । अथवा जिस जीव को जितने काल तक समाधि रहती है या जिस काल में समाधि की व्याख्या की जाती है, वह भी काल की प्रधानता को लेकर कालसमाधि है।
सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र-तप में अपनी आत्मा को स्थापित करना भावसमाधि है। इन चारों में प्रवृत्त रहने वाला, मुनि समाहितात्मा कहलाता है। निष्कर्ष यह है कि जिस साधक ने सम्यक्चारित्र में अपनी आत्मा को निहित कर दिया है, वह चारों भावसमाधियों में स्थित हो जाता है। जो साधक दर्शनसमाधि में स्थित है, उसका अन्तःकरण जिनवचनों में रंगा हुआ होने से निति स्थान में रखे हुए दीपक की तरह कुबुद्धिरूपी वायु से विचलित नहीं होता, तथा ज्ञानसमाधि के कारण साधक ज्यों-ज्यों नये-नये शास्त्रों का अध्ययन करता है, त्यों-त्यों यह भावसमाधि में प्रवृत्त होता जाता है । कहा भी है-----
जह जह सुयमवगाहइ, अइसयरसपसरसंजुयम उव्वं ।
तह तह पल्हाइ मुणी, णवणवसवेगसद्धाए ।
अर्थात् ----अतिशय प्रशान्त रस के संचार से युक्त नये-नये शास्त्र में ज्यों-ज्यों मुनि अवगाहन - प्रवेश करता जाता है, त्यों-त्यों नये-नये उत्कट मोक्ष-भाव में श्रद्धा बढ़ने से मुनि को आलाद उत्पन्न होता है।
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