________________
धर्म : नवम अध्ययन
हो जाते हैं, कर्मशत्रुओं पर, राग-द्वेष- कषाय पर या उपसर्गों एवं परीषहों पर विजय प्राप्त करने में वे समर्थ शूर हो जाते हैं अथवा आत्म-कल्याण को ढूँढ़ने में प्रवीण हो जाते हैं तथा रागद्वेषरहित शुद्ध आत्मा की प्रज्ञा को ढूंढ़ने में दक्ष हो जाते हैं, धृतिमान होते हैं, बड़े से बड़े संकटों में धैर्य एव संयम को नहीं छोड़ते, क्योंकि संयम में धीरता होने पर ही पंचमहाव्रतरूपी भार को वे वहन कर सकते हैं । जस्स धिई तस्स तवो, जस्स तवां तस्स सुग्गई सुलहा ।
दुल्लहो तेसिं ॥
होता है, जिनके पास तप है,
जे अधिइमंत पुरिसा, तवोऽवि खलु अर्थात् - जिनमें धृति है, उन्हीं के पास तप उन्हीं को सुगति सुलभ है । जो पुरुष धृतिहीन हैं, उनके लिए तप दुर्लभ है । वास्तव में धृतिमान साधक ही जितेन्द्रिय होते हैं । अर्थात् वे ही इन्द्रिय-विषयों के प्रति होने वाले राग-द्वेष को जीत लेते हैं ।
मूल पाठ
गिहे दीवमपासंता, पुरिसादाणिया नरा 1
ते वीरा बंधणुम्मुक्का, नावकरांति जीवियं ॥ ३४॥ संस्कृत छाया
गृहे दीपमपश्यन्तः पुरुषादानीया नराः
ते वीरा बन्धनोन्मुक्ताः नावकांक्षति जीवितम् ||३४||
अन्वयार्थ
(गिहे दीवमपासंता ) गृहवास में ज्ञानरूपी दीप का लाभ न देखकर, ( पुरिसादाणिया नरा) जो मनुष्य मुमुक्षुपुरुषों आश्रय-आलम्बन लेने योग्य होते हैं, (ते बंधणुम्मुक्का वीरा) वे बन्धनों से मुक्त वीर पुरुष ( जीवियं नावकखंति ) असंयमी जीवन की आकांक्षा नहीं करते, अथवा इस नश्वर जीवन की परवाह नहीं करते ।
७७७
भावार्थ
गृहवास में ज्ञानरूपी दीप का लाभ न देखते हुए जो पुरुष प्रव्रज्या धारण करके उत्तरोत्तर गुणों की वृद्धि करते हैं वे ही पुरुष मुमुक्षुओं के आश्रयभूत होते हैं । वे वीर पुरुष बन्धन से मुक्त होते हैं, वे असंयमी जीवन की इच्छा नहीं करते हैं ।
व्याख्या
बन्धनमुक्त पुरुषादानीय कौन साधक होता है ? बन्धनमुक्त पुरुषादानीय व्यक्ति कौन हो सकता है ? यह इस गाथा में बताया गया है कि जो पुरुष गृहवास में अथवा पाश के समान बन्धन रूप गृह यानी गृहस्थ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org