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धर्म : नवम अध्ययन
संस्कृत छाया त्यक्त्वा वित्तञ्च पुत्रांश्च, ज्ञातींश्च परिग्रहम् । त्यक्त्वा खल्वन्तगं शोक, निरपेक्षः परिव्रजेत् ।।७।।
अन्वयार्थ (वित्त च पुत्ते य णाइओ य परिग्गहं चिच्चा) धन और पुत्रों का, ज्ञातिजनों और परिग्रह का त्याग करके (अंतगं सोयं णं चिच्चाण) अन्तर के शोक सन्ताप को छोड़कर (निरवेक्खो परिव्वए) निरपेक्ष-निःस्पृह होकर संयम का पालन करे ।
भावार्थ धन, पुत्र, ज्ञातिजन एवं परिग्रह का त्याग करे तथा आन्तरिक सन्ताप छोड़कर साधक संयम के अनुष्ठान में प्रगति करे ।
व्याख्या
सांसारिक ममत्व छोड़कर संयम में प्रगति करे इस गाथा में साधु-धर्म के सम्बन्ध में निर्देश किया गया है कि साधु किसे छोड़े, और किसे अपनाए ? वैसे तो साधु बनते समय समस्त सांसारिक पदार्थों का मोह-ममत्व छोड़ना अनिवार्य होता है, परन्तु यहाँ उन वस्तुओं का उल्लेख खासतौर से किया गया है, जिन वस्तुओं पर मनुष्य का अधिक मोह-ममत्व होता है. जिनके लिए मनुष्य प्रायः अपने प्राण तक दे डालता है, वे हैं ---धन, पुत्र, कौटुम्बिकजन
और आभूषण, मकान, भूमि आदि परिग्रह । अतः ये और अन्य समस्त सांसारिक वस्तुएँ -- जो शरीर और शरीर से सम्बन्धित निर्जीव या सजीव हैं --उन सब पर से ममत्व का त्याग करे। किन्तु कई बार इन वस्तुओं का त्याग करने पर भी पूर्व संस्कारवश उनका सन्ताप-परिताप रह-रहकर मन में होता है, दिल की तह में उनके लिए ममत्व, चिन्ता, शोक, सन्ताप या पश्चात्ताप होता रहता है, साधु बन जाने पर भी वह मन में उन्हीं के बारे में सोचता रहता है, लोगों से उनके बारे में पूछता रहता है, या समाचार व सन्देश भेजता रहता है, अथवा उन्हें दर्शन के लिए सन्देश देता रहता है, यह साधु के लिए उचित नहीं । ऐसा होने से ममत्व का स्रोत सूखेगा नहीं, बल्कि बढ़ेगा। इसीलिए शास्त्रकार कहते हैं-चिच्चाण गंतगं सोयं निरवेक्खो परिव्यए । अर्थात् उन पदार्थों का, जिन पर से सर्वथा ममत्व छोड़ दिया है, अन्तर में यदि उनके प्रति या उनके त्याग का जरा भी शोक संताप या पश्चात्ताप हो तो उसे मन से निकाल देना चाहिए, और उन सबसे निरपेक्ष, निःस्पृह एवं विरक्त होकर, अपने संयम में प्रगति करनी चाहिए, जिस प्रव्रज्या को अपनाया है, उसमें प्रगति करनी चाहिए । साधु को अपने संयमपथ पर ही चलते रहना चाहिए । जिस वस्तु से साधु का वास्ता ही नहीं रहा, उसके बारे में पूछताछ, चिन्ता, सन्ताप या अपेक्षा करनी ही नहीं चाहिए । अथवा इस पंक्ति का अर्थ यह भी होता
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