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सूत्रकृतांग सूत्र
कोई पुरुष जेल से छूट जाने पर स्वतन्त्र स्ववश हो जाता है, वैसे ही पण्डित - वीर्यवान् पुरुष कषायमुक्त होते ही सूक्ष्म-स्थूल समस्त बन्धनों से छूटे हुए व्यक्ति की तरह स्थितप्रज्ञ, वीतराग व स्वभावस्थित हो जाता है । तथा वह पापों को दूर करके, उनके मूल कारण आस्रवों को काट कर लगे हुए काँटे की तरह बाकी रहे हुए कर्मों को समूल उखाड़ फेंकता है । यहाँ 'सल्लं कंतइ अप्पणी' यह पाठान्तर भी है जिसका अर्थ होता है -- वह पुरुष काँटे की तरह अपनी आत्मा के साथ लगे, आठ प्रकार के कर्मों को काट फेंकता है ।
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वह व्यक्ति जिसके आश्रय से शल्यरूप कर्मों का छेदन करता है, उसे अगली गाथा में शास्त्रकार कहते हैं
मूल पाठ
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आउयं सुक्खायं, उवादाय समीहए भुज्जो भुज्जो दुहावासं, असुहत्त तहा तहा ॥ ११ ॥
संस्कृत छाया
न्यायोपेतं स्वाख्यातमुपादाय समीहते 1
भूयो भूयो दुःखावासमशुभत्वं तथा तथा ।। ११ ।। अन्वयार्थ
( आउयं सुक्खायं ) सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र को तीर्थकरों ने मोक्ष का नेता
( मोक्ष प्रदाता ) कहा है, ( उवादाय समीहए ) विद्वान् पुरुष उसे ग्रहण कर मोक्ष के लिए उद्यम करते हैं । (भुज्जो भुज्जो दुहावासं ) बालवीर्य बार-बार दुःख का स्थान है | ( तहा तहा असुहत) बालवीर्य वाला व्यक्ति ज्यों-ज्यों दुःख भोगता है, त्यों-त्यों उसका अशुभ विचार बढ़ता जाता है ।
भावार्थ
तीर्थंकरों ने सम्यग्दर्शन - ज्ञान चारित्र को मोक्ष का नेता या प्रापक कहा है, इसलिए बुद्धिमान पुरुष ( पण्डितवीर्यवान ) इन्हें ग्रहण कर मोक्ष के लिए पुरुषार्थ करते हैं । तथा वालवीर्य जीव को बार-बार दुःख देता है, वह दुःखों का घर है । बालवीर्यवान ज्यों-ज्यों दुःख भोगता है, त्यों-त्यों उसका अशुभ विचार बढ़ता जाता है ।
व्याख्या
पण्डितवीर्यशाली का पुरुषार्थ और बालवीर्यवान् का भी
जो जीवों को अच्छे रास्ते ले जाता है, उसे नेता कहते हैं । यह नेता सम्यग् - दर्शन - ज्ञान - चारित्ररूप मोक्षमार्ग है अथवा श्रुत चारित्ररूप धर्म भी नेता शब्द से गृहीत होता है, क्योंकि वह भी जीव को मोक्ष में ले जाता है । ऐसा पण्डितवीर्यशाली
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