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सूत्रकृतांग सूत्र
... कुशील विषयक वर्णन के सन्दर्भ में क्रमप्राप्त गाथाएँ इस प्रकार प्रकार हैं
मूल पाठ पुढवी य आऊ अगणी य वाऊ, तण रुक्ख बीया य तसा य पाणा । जे अंडया जे य जराउ पाणा, संसेयया जे रसयाभिहाणा ॥१॥ एयाई कायाइं पवेइयाइं, एएस् जाणे पडिलेह सायं । एएण काएण य आयदंडे, एएसु या विप्परियासुविति ॥२॥
संस्कृत छाया पृथिवी चापश्चाग्निश्च वायुः तृणवृक्षबीजाश्च त्रसाश्च प्राणाः । येऽण्डजा ये च जरायुजा: प्राणा:, संस्वेदजा ये रसजाभिधानाः ।।१।। एते कायाः प्रवेदिताः, एतेषु जानीहि प्रत्युपेक्षस्व सातम् । एतैः कायर्ये आत्मदण्डाः, एतेषु च विपर्यासमुपयान्ति ॥२॥
अन्वयार्थ (पुढवी य आऊ अगणी य वाऊ) पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु (तण रुक्ख बीया य तसाय पाणा) तृण, वृक्ष, बीज, और त्रस प्राणी (जे अंडया) तथा जो अण्डज हैं, (जे य जराउ पाणा) तथा जो जरायुज प्राणी हैं (संसेयया जे रसयाभिहाणा) जो स्वेदज (पसीने से पैदा होने वाले हैं तथा जो रसज संज्ञक (जो विकृति वाले रस से उत्पन्न होते) हैं। (एयाई कायाई पवेइयाई) इन सबको सर्वज्ञों ने जीव का पिण्ड कहा है। (एएस) इन पृथ्वीकाय आदि में (सायं जाणे) सुख की इच्छा जानो (पडिलेह) इस पर सूक्ष्म दृष्टि से विचार करो (एएण काएण य आयदंडे) जो उक्त प्राणियों का नाश करके अपनी आत्मा को दण्डित करते हैं, वे (एएसु वा विपरियासुविति) इन्हीं प्राणियों में जन्म धारण करते हैं।
भावार्थ पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, तृण, वृक्ष, बीज, और जो त्रस प्राणी तथा अण्डज (पक्षी आदि), जरायुज (मनुष्य गाय आदि), स्वेदज (जूं लीख आदि) और रसज (दूध, दही आदि में उत्पन्न होने वाले) हैं, इन्हें सर्वज्ञों ने जीव के शरीर (काय) कहा है । इन पृथ्वीकायिक आदि जीवों में सुख की इच्छा रहती है, इसे समझ लो और इस पर बारीकी से विचार करो। जो जीव इन शरीरधारी प्राणियों का नाश करके उक्त पाप से अपनी आत्मा को दण्डित करते हैं, वे बार-बार इन्हीं प्राणियों में जन्म ग्रहण करते हैं।
व्याख्या जीवों के प्रकार तथा उनके नाश से अपनी महाहानि
इन दो गाथाओं में शास्त्रकार ने आहार आदि के निमित्त से जीवहिंसा
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