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संस्कृत छाया
गिरिवर इव निषध आयतानां रुचक इव श्रेष्ठो वलयायतानाम् । तदुपमः स जगद्भूतिप्रज्ञः, मुनीनां मध्ये तमुदाहुः प्रज्ञाः अन्वयार्थ
।।१५।।
सूत्रकृतांग सूत्र
(आययाणं गिरिवरे निसहा वा) जैसे लम्बे पर्वतों में श्रेष्ठ निषध प्रधान है तथा (लायताणं रुए व सेट्ठे ) चूड़ी के समान गोलाकार पर्वतों में रुचक पर्वत श्रेष्ठ कहलाता है, इसी प्रकार ( जगभूइपन्ने से) जगत् में सबसे अधिक बुद्धिमान उन भगवान् महावीर स्वामी की ( तओवमे) वही उपमा है | ( पन्ने ) बुद्धिमान पुरुषों ने ( मुणीण मज्झे तमुदाहु) मुनियों में भगवान् को श्र ेष्ठ कहा ।
भावार्थ
जिस प्रकार दीर्घाकार (लम्बे ) पर्वतों में निषधपर्वत श्रेष्ठ है, तथा वलयाकार (चूड़ी के समान गोल) पर्वतों में रुचक पर्वत श्रेष्ठ है, वही उपमा संसार में चराचर विश्व के ज्ञाता अनन्तज्ञानी (सर्वाधिक प्रज्ञावान ) भगवान् महावीर स्वामी पर घटित होती है । बुद्धिमान पुरुषों ने विश्व के सभी त्यागी ऋषि मुनियों में श्रमण महावीर को श्रेष्ठ बतलाया है ।
व्याख्या
समस्त मुनियों में श्रेष्ठ महावीर : कैसे ?
इस गाथा में दो पर्वतों की उपमा देकर भगवान् महावीर को सबसे अधिक बुद्धिमान एवं सर्वश्रेष्ठ बतलाया है । जैसे जम्बूद्वीप या अन्य द्वीपों में समस्त लम्बे पर्वतों में निषध पर्वत श्रेष्ठ है, तथा वर्तुलाकार (चूड़ी की तरह गोल ) पर्वतों में रुचकपर्वत उत्तम है, क्योंकि वह रुचक द्वीपान्तवर्ती मानुषोत्तर पर्वत की तरह गोल और लम्बा है, तथा असंख्येय योजन विस्तृत है, इसी तरह भगवान् भी हैं । अर्थात् वे दो पर्वत जैसे लम्बाई और गोलाई में सबसे श्र ेष्ठ हैं, इसी प्रकार भगवान् भी संसार में सर्वाधिक भूतिप्रज्ञ है यानी प्रज्ञा में सर्वश्रेष्ठ है । तथा उनके स्वरूप को जानने वाले बुद्धिमान् कहते हैं कि वे त्यागी ऋषि-मुनियों में सर्वश्रं ष्ठ हैं, सर्वोपरि हैं ।
मूल पाठ
अणुत्तरं धम्ममुईरइत्ता, अणुत्तरं भाणवरं भियाई । सुसुक्क सुक्कं अपगंड सुक्कं संखिदुए गंतवदातसुक्कं ॥ १६ ॥
संस्कृत छाया अनुत्तरं धर्ममुदीरयित्वाऽनुत्तरं ध्यानवरं ध्यायति I सुशुक्ल शुक्लमपगण्डशुक्लं शंखेन्दुवदेकान्तावदातशुक्लम् ||१६||
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