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________________ वीरस्तुति : छठा अध्ययन ६४६ सारांश यह है कि भगवान् महावीर संसार में सबसे श्रेष्ठ, प्राणिमात्र के लिए आनन्दकारी एवं सत्य, शील आदि अनेक गुणों के अक्षयनिधि थे। मूल पाठ सयं सहस्साणं उ जोयणाणं, तिकंडगे पंडगवेजयंते से जोयणे णवणवते सहस्से, उद्ध स्सितो हेट्ठसहस्समेगं ॥१०॥ पुढे णभे चिठ्ठइ भूमिवठ्ठिए, ज सूरिया अणुपरिवट्टयंति । से हेमवन्ने बहुनंदणे य, जंसी रइं वेदयंति महिंदा ॥११॥ से पव्वए सद्दमहप्पगासे, विरायतो कंचणमठवन्ने । अणुत्तरे गिरिसु य पव्वदुग्गे गिरिवरे से जलिएव भोमे ॥१२॥ महीइ मज्झमि ठिए णगिदे, पन्नायते सूरिय सुद्धलेसे । एवं सिरिए उ स भूरिवन्ने, मणोरमे जोयइ अच्चिमाली ॥१३॥ सुदंसणस्सेव जसो गिरिस्स, पवुच्चई महतो पव्वयस्स । एतोवमे समणे नायपुत्त जाती जसो दंसणनाणसीले ॥१४॥ संस्कृत छाया शतं सहस्राणां तु योजनानां, त्रिकण्डकः पण्डकवैजयन्तः । स योजने नवनवति सहस्राणि ऊर्ध्वमुच्छ्तिोऽधः सहस्रमेकम् स्पृष्टो नभस्तिष्ठति भूम्यवस्थितो यं सूर्या अनुपरिवर्तयन्ति स हेमवर्णो बहुनन्दनश्च यस्मिन् रतिं वेदयन्ति महेन्द्रा: ॥११॥ स पर्वतः शब्दमहाप्रकाशो, विराजते काञ्चनमष्टवर्णः अनुत्तरो गिरिषु च पर्वदुर्गो, गिरिवरोऽसौ ज्वलित इव भौमः ॥१२॥ मह्यां मध्ये स्थितो नगेन्द्रः, प्रज्ञायते सूर्यशुद्धलेश्यः एवं श्रिया तु स भूरिवर्णः मनोरमो द्योतयचिमालो ॥१३।। सुदर्शनस्येव यशो गिरेः प्रोच्यते महतः पर्वतस्य । एतदुपमः श्रमणो ज्ञातपुत्रः जातियशो दर्शन ज्ञानशील: ॥१४॥ अन्वयार्थ __ (सहस्साणं जोयणाणं सयं उ) वह सुमेरु पर्वत सौ हजार (एक लाख) योजन ऊँचा है, (तिकंडगे) उसके तीन विभाग हैं। (पंडगवेजयंते) उस पर्वत पर सबसे ऊपर स्थित पण्डकवन पताका की तरह शोभा पाता है। (से) वह सुमेरु पर्वत (जोयणे णवणवति सहस्से उद्धस्सितो) ६६ हजार योजन ऊपर उठा है, (हेट्ठसहस्समेगं) और एक हजार योजन भूमि में गड़ा है ॥१०॥ ॥१०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003599
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1979
Total Pages1042
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size17 MB
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