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सूत्रकृतांग सूत्र (इणं) इस (अणुत्तरं) सबसे प्रधान (धम्म) धर्म के (णेया) नेता थे (दिवि) जैसे देवलोक में (सहस्स देवाण) हजारों देवों का (इंदेव) इन्द्र नेता (महाणुभावे विसिढे) और अधिक विशिष्ट प्रभावशाली है, वैसे ही भगवान् सारे जगत् में विशिष्ट प्रभावशाली थे।
भावार्थ सर्वत्र सदैव सतत उपयोगसम्पन्न प्रज्ञावान काश्यप वंश के तेजस्वी सूर्य, मननशील मुनि श्रमण भगवान् महावीर ऋषभ आदि जिनवरों के द्वारा प्रचलित इस श्रेष्ठ अहिंसादि या सूत्रचारित्ररूप धर्म के महान् नेता थे। स्वर्गलोक में जिस प्रकार इन्द्र असंख्य (सहस्रों) देवों पर नेतृत्व करता है, वैसे ही वीरप्रभु भी अपने युग के एक मात्र सर्वप्रधान विशिष्ट प्रभावशाली धर्मनेता थे, अथवा धर्म साधना करने वाले साधकों के पथप्रदर्शक नेता थे।
व्याख्या भगवान् महावीर धर्मनेता और सर्वश्रेष्ठ पुरुष थे
इस गाथा में भगवान महावीर कैसे धर्मनेता थे ? किस प्रकार के सर्वश्रेष्ठ प्रभावशाली पुरुष थे ? यह उपमाओं द्वारा समझाया गया है। भगवान् महावीर के लिए यहाँ तीन विशेषणों का प्रयोग करके उनके धर्मनेतृत्व गुण का औचित्य सिद्ध किया गया है। वे हैं-मुणी, कासव, आसुपन्न । जो तीनों लोकों के समस्त तत्त्वों पर मनन-चिन्तन-विचार करते हैं, वे मुनि होते हैं। इस प्रकार भगवान् मुनिश्रेष्ठ थे। फिर वे काश्यपवंश के उज्ज्वल सूर्य थे। काश्यप सूर्य को भी कहते हैं, सूर्यसम नृवंश को भी प्रबुद्ध करने वाले सूर्य थे। तीसरा विशेषण आशुप्रज्ञ है, जिसका यहाँ विवक्षित अर्थ है-सदैव सर्वत्र सतत ज्ञानोपयोगसम्पन्न प्राज्ञ । धर्मनेता में ये तीनों विशिष्ट गुण आवश्यक हैं। यही कारण है कि सुधर्मा स्वामी की दृष्टि में भगवान् महावीर ऋषभ आदि पूर्वतीर्थंकरों द्वारा प्रचलित इस सर्वोत्तम अहिंसादि या सूत्रचारित्र रूप धर्म के नेता जच गए थे। कैसे नेता थे वे ? इसके लिए शास्त्रकार कहते हैं - 'इंदेव देवाण दिविणं विसिट्ठ' अर्थात्-जैसे देवलोक में इन्द्र हजारों देवों का नेता होता है, इसी प्रकार भगवान् महावीर भी धर्मसाधकों के विशिष्ट प्रभावशाली नेता थे। संक्षेप में भगवान् महावीर धर्मनेता, रूप, बल, वंश और वर्ण आदि में सर्वप्रधान, सबसे विशिष्ट, सबसे अधिक प्रभावशाली और सर्वश्रेष्ठ पुरुष थे।
मूल पाठ से पन्नया अक्खयसागरे वा, महोदही वावि अणंतपारे। अणाइले वा अकसाइ मुक्के, सक्केव देवाहिवइ जुइमं ॥८॥
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