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________________ ६२६ सूत्रकृतांग सूत्र ( पुण्वमरी) पहले के शत्रु के समान ( सरोसं) रोष के साथ (भजंति) नारकी जीवों के अंगों को तोड़ देते हैं । ( भिन्नदेहा) जिनकी देह टूट गई है, ऐसे नारकी जीव ( रुहिरं वता ) रक्त वमन करते हुए अधोमुख होकर ( धरणितले) भूतल पर (पति) गिर जाते हैं । भावार्थ पूर्वजन्म के दुश्मन के समान हाथ में मुद्गर और मूसल लिए परमा धार्मिक असुर नारकों को देखते ही उन पर टूट पड़ते हैं, प्रहार से उनके अंग-अंग चूर-चूर कर डालते हैं । देह चूर-चूर हो जाने के कारण मुँह से खून की उल्टी करते हुए वे नारकी जीव औंधे मुँह जमीन पर गिर पड़ते हैं । व्याख्या नारकों की भयंकर दुर्दशा 1 इस गाथा में नारकों की भयंकर दुर्दशा का करुण वर्णन है । पूर्वजन्म में किये हुए पापों की भयंकर सजा इस नरकभव में उन्हें परमाधार्मिक असुर देते हैं । वे या अन्य नारक जब सजा देने लगते हैं तो पूर्वजन्म के शत्रु से बनकर हाथ में मुद्गर और मूसल लिये रोषपूर्वक नारकों पर गाढ़ प्रहार करते हैं, जिससे उनके अंग चूर-चूर हो जाते हैं । उसके बाद अरक्षित, असहाय एवं शस्त्र से आहत नारकी जीव मुँह से खून की उल्टी करते हुए औंधे मुँह के बल जमीन पर गिर पड़ते हैं । वे जोर से कराहते हैं, लेकिन कोई उनकी पुकार नहीं सुनता । मूल पाठ अणासिया नाम महासियाला पागब्भिणो तत्थ सया सकोवा । खज्जंति तत्था बहुकूरकम्मा, अदूरगा संकलियाहि बद्धा ॥२०॥ संस्कृत छाया अनशिता नाम महाशृगाला: प्रगल्भिणस्तत्र सदा सकोपाः । खाद्यन्ते तत्स्थाः बहु क्रूरकर्माणः अदूरगाः शृंखलैर्बद्धाः ||२|| अन्वयार्थ ( तत्थ ) उस नरक में (सया सकोवा) सदा कोधित ( अणासिया ) क्षुधातुर (पागब्भिणो ) ढीठ ( महासियाला ) बड़े-बड़े सियार रहते हैं । ( तत्था ) वे वहाँ रहने वाले सियार ( बहुकूरकम्मा ) जन्मान्तर में अत्यन्त पाप किये हुए ( संकलिया हि बद्धा) जंजीरों से बंधे हुए ( अदूरगा ) निकट में स्थित नारकों को (खज्जति) खा हैं। भावार्थ वहाँ नरक में सदा क्रोधित और भूखे ढीठ भीमकाय शृगाल रहते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003599
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1979
Total Pages1042
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size17 MB
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