________________
६२२
सूत्रकृतांग सूत्र अन्वयार्थ (असाहुकम्मा) दुष्कर्मकारी पापी नारकी जीवों को (रुद अभिजुजिय) उनके जीवहिंसादि रौद्र-भयंकर कुकृत्यों का स्मरण कराकर (उसुचोइया) बाण के प्रहार से प्रेरित करके (हस्थिवहं वहति) उनसे हाथी की तरह भार वहन कराते हैं । (एगं दुवे ततो वा दुरूहित्त) एक दो या तीन नारकों को उनकी पीठ पर चढ़ाकर उन्हें चलाते हैं। और (आरुस्स) क्रोध करके (से ककाणओ) उनके मर्मस्थान में (विज्झंति) वेधते हैं- सुई जैसी नोकदार वस्तु चुभोते हैं ।
भावार्थ नरकपाल पापी नारकी जीवों को उनके पूर्वकृत पापों की याद दिलाकर बाण के प्रहार से प्रेरित करके हाथी की तरह भार ढोने के लिए बाध्य कर देते हैं। उनकी पीठ पर एक दो या तीन नारकी जीवों को बिठाकर चलाते हैं तथा क्रोधित होकर उनके मर्मस्थान में तीखा नोकदार शस्त्र चुभोते हैं।
व्याख्या पूर्व पापों की याद दिलाकर भारवहन को बाध्य
__इस गाथा में नरकपालों द्वारा नारकों को जबरन भार ढोने के लिए बाध्य करने का मार्मिक चित्रण है।
___ 'रुद्द अभिजु जिय' इस वाक्य के दो अर्थ निकलते हैं। एक यह है कि नरकपाल नारकी जीवों को दूसरे नारकों के हनन आदि रौद्र-क्र र कर्मों में लगाकर, तथा दूसरा अर्थ है-पूर्वजन्म में नारकों द्वारा किये गए प्राणिघात आदि भयंकर पापकर्मों का स्मरण कराकर ।
जैसे हाथी पर चढ़कर उससे भारी वजन ढोने का काम लेते हैं, वैसे ही नारकी जीवों से भी नरकपाल किस प्रकार भारवहन कराते हैं ? इसके उत्तर में शास्त्रकार कहते हैं एक नारकी जीव की पीठ पर एक, दो या तीन दूसरे नारकी जीवों को बैठाकर उससे भारवहन कराते हैं। अगर वह अधिक बोझ होने के कारण ठीक से चलता नहीं है तो रुष्ट होकर उसे चाबुक आदि से मारते हैं या उसके मर्मस्थान में सुई आदि तीखी नोकदार चीज चुभो देते हैं। कितनी नृशंसता का व्यवहार है यह ? पर क्या किया जाय ? विवश होकर नारकी जीवों को यह सब कष्ट सहना ही पड़ता है।
मूल पाठ बाला बला भूमिमणुक्कमंता, पविज्जलं कंटइलं महतं । विवद्धतप्पेहि विसण्णचित्ते, समीरिया कोट्टबलि करिति ।।१६।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org