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सूत्रकृतांग सूत्र
नरक में बांध दिये जाते हैं (अरहस्सरा चिट्ठेति) गला फाड़-फाड़ कर जोर-जोर से चिल्लाते रहते हैं ।
भावार्थ
एक ऐसा प्राणियों का घातस्थान है, जो सदा जलता रहता है और जिसमें बिना लकड़ी की आग निरन्तर जलती रहती है । जिन्होंने पूर्वजन्म में अत्यन्त क्रूरकर्म किये हैं, वे पापी नारकीजीव बाँध दिये जाते हैं, वे अपने पाप का फल भोगने के लिए चिरकाल तक वहाँ निवास करते हैं और पीड़ा के मारे गला फाड़कर जोर-जोर से रोते रहते हैं ।
व्याख्या
सदा अग्निमय प्राणिघातक स्थान में दुःखी नारकी जीव !
इस गाथा में यह बताया गया है कि जहाँ सदैव बिना ही ईंधन के आग जलती रहती है, उस प्राणिघातक नरकस्थान में नारक दीर्घकाल (उत्कृष्ट ३३ सागरोपम काल) तक कैसे रहते हैं ? वे क्यों रहते हैं, ऐसे घोर दुःखमय स्थान में ? क्या वे नरक से भागकर अन्यत्र कहीं जा नहीं सकते ? इतनी पीड़ा होते हुए भी वे मरते क्यों नहीं ? इन सब का समाधान इस गाथा के उत्तरार्द्ध में किया गया है“चिट्ठति बद्धा..... चिरट्ठितीया ।" नारकी जीवों का जितना आयुष्य होता है, वे उसे पूर्ण करने के बाद ही मरते हैं, पहले नहीं; क्योंकि उनका आयुष्य अनपवर्त्य ( निरुपक्रम) होता है, ' इसलिए यह 'चिरट्ठितीया' कहा है। दीर्घकाल तक आयुष्यबद्ध होने के कारण पूरी अवधि तक नरक की सजा भोगे बिना उनका छुटकारा नहीं हो सकता । इसीलिए वे इतनी पीड़ा होते हुए भी उस घोर दुःखमय स्थान को छोड़कर न न तो कहीं अन्यत्र जा सकते हैं और न ही मर सकते हैं। बल्कि परमधार्मिकों या अन्य नारकों द्वारा बाँधे जाने के कारण वे इधर-उधर अपनी इच्छा से भाग भी नहीं सकते, उन्हें पूरी सजा भोगनी पड़ती है, क्योंकि उन्होंने पूर्वजन्म में अत्यन्त क्रूर कर्म किये थे, उनके फलस्वरूप यह भयंकर दण्ड उन्हें मिलता है । पर सजा भोगते समय वे बेचारे अज्ञानी नारक जोर-जोर से गला फाड़कर रोते-बिलखते इतनी लम्बी जिंदगी पूरी करते हैं ।
मूल पाठ
चिया महंती उ समारभित्ता, छुब्भंति ते तं कलणं रसंत । आती तत्थ असाहुकम्मा, सप्पी जहा पडियं जोइमज्झे || १२ ||
१ देखिये तत्वार्थ सूत्र में औपपातिक ( देव और नारक ) चरमदेहोत्तमपुरुषाऽसंख्येयवर्षायुषोऽनपवर्त्यायुषः ।
- तत्थार्थ अ० २ रू० ५३
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