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समय : प्रथम अध्ययन-प्र
प्रथम अध्ययन : प्रथम उद्देशक स्वसमय-वक्तव्यताधिकार
मूल पाठ बुज्झिज्जत्ति तिउट्टिज्जा, बंधणं परिजाणिया। किमाह बंधणं वीरो, किं वा जाणं तिउट्टइ ? ॥१॥
संस्कृत छाया बुध्येत त्रोटयेत् बन्धनं परिज्ञाय किमाह बन्धनं वीर: किं वा जास्त्रोटयति ? ॥१॥
अन्वयार्थ (बुज्झिज्जत्ति) मनुष्यों को बोध प्राप्त करना चाहिए। (बंधणं परिजाणिया) बन्धन को जानकर, (तिउट्टिज्जा) उसे तोड़ना चाहिए । (वीरो) वीरप्रभु ने (बंधणं किमाह) बन्धन का स्वरूप क्या बताया है ? (वा) और (किं जाणं) क्या जानता हुआ पुरुष (तिउट्टइ) बन्धन को तोड़ता है ?
भावार्थ मनुष्यों को बोध प्राप्त करना चाहिए, तथा बन्धन का स्वरूप जान कर उसे तोड़ना चाहिए । वीरप्रभ ने बन्धन का स्वरूप क्या बताया है ? और किसको जानकर जीव बन्धन को तोड़ता है।
व्याख्या सूत्रकृतांगसूत्र के प्रथम अध्ययन के प्रथम उद्देशक में सर्वप्रथम बोध प्राप्त करने की बात कही है। सूत्रकृत शब्द का अर्थ गणधर होने से, गणधरों ने भगवान महावीर से इस शास्त्र को ग्रहण किया था। अत: गणधर ही वास्तव में इस सूत्र के उपदेष्टा हैं । वे अपनी नम्रता प्रदर्शित करने के लिये अपने शिष्यों द्वारा पूछे जाने पर भगवान महावीर के द्वारा प्राप्त उपदेश (बोध) को उनके समक्ष प्रकट करते हैं। वह उपदेश क्या और कौन सा है ? इसके लिये सर्वप्रथम बोध प्राप्त करने का निर्देश करते हैं।
बोध ही मनुष्य के लिये सबसे महत्वपूर्ण इस जीव को मनुष्य जन्म प्राप्त करने से पहले निगोद व एकेन्द्रिय के भव में कोई बोध प्राप्त नहीं हो सका, क्योंकि एकेन्द्रिय जीवों की चेतना अत्यन्त सुषुप्त
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