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काधिकार : पंचम अध्ययन - द्वितीय उद्देशक
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यह बताया गया है। बाध्य कर देते हैं ।
अमानुषिक एवं क्रूर यातनापूर्ण बर्ताव करते हैं । इस गाथा में कि नरकपाल नारकी जीवों को कैसे नरकभूमि पर चलने को बेचारे अज्ञानी नारकों को वे जलते हुए लोहे के मार्ग ( लोहे की रेल की पटरी) के समान गर्म तथा रक्त व मवाद की अधिकता के कारण पंकिल भूमि पर जबरन चलाते हैं । अत्यन्त ऊबड़खाबड़ या विषम नरकस्थान में चलने के लिए परमाधार्मिक उन्हें प्रेरित करते हैं, किन्तु जब वे ठीक से नहीं चलते, तब क्रुद्ध होकर बैल कोड़े आदि मार-मारकर उन्हें आगे चलने को बाध्य कर कि नारकी जीव स्वेच्छा से न तो कहीं जा सकते हैं, न
या दास की तरह डंडे, देते हैं । निष्कर्ष यह है कहीं रह सकते हैं ।
मूल पाठ
ते संपगढ स पवज्ज माणा, सिलाहि हम्मंति निपातिणीहि । संतावणी नाम चिट्ठितीया, संतप्पती जत्थ असाहुम्मा ||६|| संस्कृत छाया
ते सम्प्रगाढं प्रपद्यमानाः शिलाभिर्हन्यन्ते निपातिनीभिः । संतापनी नाम चिरस्थितिका, सन्तप्यते यत्रासाधुकर्मा ||६||
अन्वयार्थ
( संपगासि) तीव्र वेदना से भरे असह्य नरक में ( पवज्जमाणा ) पड़े हुए (ते) वे नारकी जीव ( निपातिणीहि सिलाहि हम्मंति) सम्मुख गिरने वाली शिलाओं के नीचे दबकर मारे जाते हैं । (संतावणी) संतापनी यानी संताप देने वाली कुम्भी नरकभूमि ( चिरट्ठितीया) चिरकाल तक स्थिति वाली है । ( जत्थ) जहाँ ( असा हुकम्मा ) पापकर्म करने वाला जीव चिरकाल तक (संतप्पती) संतप्त होता है ।
भावार्थ
तीव्र पीड़ा से परिपूर्ण नरक में पड़े हुए नारकी जीव कभी-कभी सामने से गिरती हुई शिलाओं से मारे जाते हैं । कुम्भी नामक संतापनी नरकभूमि को प्राप्त पापी नारकों की स्थिति बहुत लम्बी होती है । पापकर्मी नारक उसमें दीर्घकाल तक संतप्त होता रहता है ।
व्याख्या
चिरकाल तक संतापनी में संतप्त नारक इस गाथा में नारकों की चिरकालीन वेदना का जीता-जागता चित्रण है । जब नारकी जीव अत्यन्त घोर पीड़ा से पूर्ण असह्य नरक में अथवा मार्ग में होते हैं और वे इधर-उधर हटने या चले जाने में असमर्थ होते हैं, तो असुरों द्वारा सामने से शिलाएँ पटकी जाती हैं, जिनके नीचे दबकर वे मरणासन्न हो जाते हैं । जो प्राणियों
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