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नरकविभक्ति : पंचम अध्ययन–प्रथम उद्देशक
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अथवा वे जिन माता-पिता, भाई-बहन, पत्नी-पुत्र आदि स्वजनों के लिए पाप का उपार्जन करते हैं, उनसे रहित होकर अकेले, असहाय और असुरक्षित होकर नरक में चिरकाल तक सड़ते रहते हैं। नरकमियाँ सड़े हुए मुर्दे से भी अधिक बदबूदार तथा अत्यन्त उद्वेगजनक स्पर्श वाली एवं मांस, रुधिर, पीव, चर्बी आदि गंदे पदार्थों से भरी हुई घृणास्पद हैं । जहाँ नारकों का हाहाकार शब्द दशों दिशाओं को बहरा कर देता है । ऐसी अतिनीच नरक में प्रायः अज्ञान के कारण नारक जीव उत्कष्टतः ३३ सागरोपम काल तक की आयु तक रहते हैं । 'त्ति बेमि' शब्द का अर्थ पूर्ववत् है ।
इस प्रकार पंचम अध्ययन (नरकविभक्ति) का प्रथम उद्देशक अमरसुखबोधिनी व्याख्या सहित सम्पूर्ण हुआ।
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