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संस्कृत छाया
प्राणैः पापा वियोजयन्ति तद्भवदभ्यः प्रवक्ष्यामि याथातथ्येन । दण्डैस्तत्र स्मरयन्ति बालाः सर्वैः दण्डैः पुराकृतैः
॥१६॥
सूत्रकृतांग सूत्र
अन्वयार्थ
( पावा) पापी नरकपाल (पाणेहि विओजयंति ) नारकी जीवों के अंगों को काटकर अलग-अलग कर देते हैं, (तं) इसका कारण मैं ( भे) आपको ( जहात हेण ) यथार्थ रूप से ( पक्खामि ) कहूँगा । ( बाला) अज्ञानी नरकपाल (दंडे हि) नारकी जीवों को दण्ड देकर (सव्वेहि पुराकएहि दंडेहि) उनके दण्ड के कारणभूत समस्त पूर्वकृत पापों का ( सरयंति) स्मरण कराते हैं ।
भावार्थ
पापात्मा परमधार्मिक असुर नारकी जीवों के अंगों को काटकर अलग अलग कर देते हैं, इसका कारण मैं आपको बताऊँगा । वास्तव में वे अज्ञानी नरकपाल नरक के जीवों के द्वारा पूर्वजन्म में दूसरे प्राणियों को दिये गए दण्ड ( पूर्वजन्मकृत दण्डरूप समस्त पापकर्मों) के अनुसार ही दण्ड देकर उन्हें उनके पूर्वकृत पापकर्मों की याद दिलाते हैं ।
व्याख्या
पूर्व दिये गए दंड के अनुसार ही दंड
नरकपाल इसके पीछे कौन-सा कारण
इस गाथा में नरकपालों द्वारा वर्तमान नरकभव में नारकीयों को दिये जाने वाले दण्ड का मूल कारण बताया गया है कि पापकर्मा नारकी जीवों के अंगों को काट-काट कर उन्हें पृथक्-पृथक् कर देते हैं, है ? इसका कारण सर्वज्ञ वीरप्रभु स्वयं बताने की कृपा करते हैं । विवेकमूढ़ परमाधार्मिक असुर नारकों को नाना प्रकार का दण्ड देते समय उन्हें उनके द्वारा पूर्वजन्म में किये हुए कर्मों का इस प्रकार स्मरण कराते हैं – " मूर्ख ! तू बड़े हर्ष के साथ प्राणियों का मांस काट-काट कर खाता था, तथा उनका रक्त पीता था एवं मंदिरापान व परस्त्रीगमन करता था । अपने किये हुए उन पापकर्मों को याद कर । अब उन्हीं पापकर्मों का फल भोगते समय तू इस प्रकार क्यों चिल्लाता है ? क्यों हायतोबा मचाता है ? इस प्रकार परमाधार्मिक नरकपाल नारकी जीवों द्वारा पूर्वजन्म में दूसरे प्राणियों को जो जो दण्ड दिये हैं- हानि पहुँचाई है, उन सभी का स्मरण कराते हुए तदनुसार दण्ड ( दुःखरूप) देकर उन्हें पीड़ित करते हैं ।
मूल पाठ
ते हम्ममाणा णरगे पडंति, पुन्ने दुरुवस्स महाभितावे
ते तत्थ चिट्ठति दुरूवभक्खी, तुटंति कम्मोवगया किमीहि ॥२०॥
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