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सूत्रकृतांग सूत्र
बनकर बेखटके त्रस और स्थावर ( द्वीन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीव त्रस एवं पृथ्वीकाय आदि पाँच एकेन्द्रिय जीव स्थावर कहलाते हैं) जीवों की निर्दयतापूर्वक रौद्र - परिणामों से हिंसा करता है, नाना उपायों से जीवों का उपमर्दन ( वध, बंध आदि) करता है और अदत्ताहारी है यानी चोरी करता है बिना दिये दूसरों का द्रव्य हरण कर लेता है तथा अपने कल्याण के लिए जो सेवन करने योग्य या सज्जनों द्वारा सेव्य संयम का जरा भी सेवन नहीं करता अर्थात् पापकर्म के उदय के कारण जो काकमांस आदि तुच्छ असेव्य वस्तु से भी विरत नहीं होता है ।
इसके अतिरिक्त जो प्राणी प्राणियों की हिंसा आदि पाप करने में बड़ा ढीठ है, जिसे पापकर्म करने में कोई लज्जा, संकोच या हिचक नहीं होती, जो बेखटके बहुत से प्राणियों की हिंसा कर देता है । प्रागल्भी का अर्थ है - प्रगल्भ - धृष्टता करने वाला । प्राणियों का अत्यन्त पात ( घात) करने का जिसका स्वभाव है, उसे अतिपाती कहते हैं । शास्त्रकार का आशय यह है कि जो पुरुष अपने मतलब के अनुसार किसी धर्मशास्त्र का मनमाना अर्थ निकालता है, अथवा किसी कुशास्त्र का आश्रय लेकर हिंसा, असत्य, मद्यपान, मांसाहार, मैथुनसेवन आदि को निर्दोष बताने का साहस करता है । वह कहता है, 'वेदविहिता हिंसा हिंसा न भवति ।' वेद में जिसका विधान है, वह हिंसा हिंसा नहीं होती । अथवा कोई मनचला यह कहता है— शिकार करना तो क्षत्रियों या राजाओं का धर्म है या कर्म है, ताकि वे इससे मनोरंजन कर सकें । अथवा कई लोग इस प्रकार के श्लोक कहकर उसका मनमाना अर्थ करते हैं—
न मांसभक्षणे दोषो न मद्ये न च मैथुने 1 प्रवृत्तिरेषा भूतानां निवृत्तिस्तु महाफला ॥
अर्थात् - मांस खाने में, शराब पीने में और मैथुन सेवन करने में कोई दोष नहीं है । यह तो जीवों की स्वभावसिद्ध प्रवृत्ति है । परन्तु इनसे निवृत्ति महाफलदायिनी है ।
जो लोग इस प्रकार बिना किसी हिचकिचाहट के क्रूर सिंह और काले साँप के समान स्वभाव से प्राणियों का वध करते हैं, तथा जिनकी कषायाग्नि कभी शान्त नहीं होती, जो जानवरों की कत्ल एवं मछलियों का वध करके अपनी जीविका चलाते हैं, तथा जिनके परिणाम सदा वध करने के बने रहते हैं, जो कदापि शान्त नहीं होते, ऐसे पापी जीव अपने किये हुए पापकर्मों का फल भोगने के लिए प्राणिघातक स्थान - नरक में जाते हैं । जो अज्ञानी है, मरणकाल में वह नीचे घोर अंधकार में जाता है, जहाँ उसे बाह्य प्रकाश भी नहीं मिलता और ज्ञान का प्रकाश भी नहीं । अपने किये हुए पापकर्मों के कारण सिर नीचा करके वह पापी भयंकर यातनास्थान में जा
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