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व्याख्या
अनगार पर क्रिया का त्रियोग से त्याग करे
इस गाथा में साधु को अपनी मौलिक मर्यादाओं का भान कराकर मन-वचन काया तीनों योगों से पर-क्रिया से विरत होने की प्रेरणा दी गई है । साधु को अपनी मौलिक मर्यादाओं का भान कराने के लिए शास्त्रकार ने साधु के लिए यहाँ पाँच विशेषणों का प्रयोग किया है - 'सुविशुद्धलेश्यावान्, मेधावी, ज्ञानी, सर्वस्पर्शसह, और अनगार ।'
सूत्रकृतांग सूत्र
सुविशुद्ध-श्यावान् का अर्थ है - जिसकी चित्तवृत्ति विशेष रूप से स्त्रीसंसर्ग के त्यागरूप होने के कारण निष्कलंक - सुविशुद्ध है । मेधावी का अर्थ है - जो मर्यादा स्थित है। ज्ञान का अर्थ है - जो स्व-पर, या हेय ज्ञय उपादेय को या जानने योग्य पदार्थों को भली-भांति जानता है । सर्वस्पर्शसह का अर्थ है स्त्री - स्पर्शपरीषह से लेकर अन्य सभी शीत-उष्ण, दंश-मशक, तृण आदि जितने भी स्पर्श हैं, उन सबको जो समभाव से सहता है । और अनगार का अर्थ है - जो घरबार, कुटुम्ब - परिवार, धन-सम्पत्ति, जमीन-जायदाद, गृह सम्बन्धी समस्त सांसारिक रिश्ते-नाते, लेन-देन, व्यवहार एवं स्त्री- बालक आदि का मोहजनित सम्पर्क छोड़कर संयम में स्थित है ।
इन पाँच विशेषणों द्वारा साधु जीवन की मर्यादाएँ समझाकर शास्त्रकार मूल मुद्दे की बात कहते हैं- 'माणसा वयसा काएणं परिकिरियं च वज्जए ।' यहाँ परक्रिया का मन-वचन-काया इन त्रियोग से, तथा उपलक्षण से तीन करण (करना, कराना और अनुमोदन तीनों) से त्याग करने का निर्देश किया है। परक्रिया के यहाँ लगभग चार अर्थ प्रतीत होते हैं - ( १ ) आत्मभावों से अन्य परभावों अनात्मभावों की क्रिया, अथवा आत्महित में बाधक क्रिया; (२) स्त्री आदि आत्मगुणबाधक पदार्थ के लिए जो क्रिया की जाती है, अर्थात् विषय का उपभोग देकर जो दूसरे का उपकार किया जाता है, वह परक्रिया है । ( ३ ) विषय-भोग की सामग्री देकर दूसरे की कुछ सहायता करना भी परक्रिया है; (४) दूसरे – गृहस्थ नर-नारी से अपने पैर दबवाना, पैर धुलाना आदि सेवा कराना भी परक्रिया है ।
इन चारों प्रकार के अर्थों की छाया में पूर्वोक्त पाँच विशेषणों से युक्त साधु मन, वचन और शरीर से परक्रिया का सर्वथा त्याग करे ।
तात्पर्य यह है कि साधु परक्रिया ( एक अर्थ के अनुसार ) - औदारिक एवं दिव्य कामभोग के लिए मन से भी विचार न करे, दूसरे को भी मन से प्रेरित न करे, मन से ऐसा विचार करने को अच्छा न समझे । इसी प्रकार वचन से एवं शरीर से भी समझ लेना चाहिए। औदारिक काम भोग के नौ भंद होते हैं, वैसे ही
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