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________________ सूत्रकृतांग सूत्र पुरुष से क्या माँगें करती है ? वह कहती है-प्रियतम ! खसखस के दानों के साथ पीसे हुए कमलकुष्ट, अगरु और तगर इन सुगन्धित द्रव्यों को ला दो, अथवा कमलकुष्ट, अगरु और तगर इन्हें लाकर खसखस के साथ अच्छी तरह पीसें। मेरे चेहरे की सुन्दरता बढ़ाने के लिए मुख पर लगाने हेतु कोई अच्छा-सा तेल लेते आएँ। मेरे कपड़े आदि अस्त-व्यस्त पड़े रहते हैं, इन्हें तरतीब से जमाकर रखने के लिये बांस की बनी हुई एक पेटी (सन्दूक) ले आएँ । इसके पश्चात् स्त्री की मांग होती है - प्रियवर ! मुझे अपने ओठ रंगने के लिए अनेक द्रव्यों के संयोग से बना हुआ नन्दीचूर्णक चाहिए, उसे बाजार से ले आना और छाता तथा जूते लाना भी याद रखना। साथ ही साग आदि सुधारने के लिए चाकू या छुरी ले आना। मेरे पहनने का वस्त्र हलके नीले रंग का रंगवा दो। शीलभ्रष्ट पुरुष को फिर वह दास्यकर्म में प्रेरित करती हुई कहती है-- प्राणनाथ ! सागभाजी पकाने के लिए एक तपेली या बटलोई लेते आना। जिसमें तक्र आदि पदार्थों को सुखपूर्वक पकाया जाय, उसे सुफणि (तपेली, बटलोई या पतीली) कहते हैं। स्नान करने या पित्तशान्ति के निमित्त खाने के लिए आँवले भी लेते आना। जल रखने का बर्तन (घड़ा, मटकी आदि) लाओ। यहाँ उपलक्षण से धी. तेल तथा घर की अन्य सामग्री रखने के लिए पात्र (बर्तन) लाने की सूचना भी गभित है । जिससे तिलक किया जाता है, उसे तिलककरणी कहते हैं । अथवा जिससे गोरोचना आदि लगाकर तिलक किया जाता है या गोरोचना को तिलककरणी कहते हैं। अथवा जिसमें तिलक करने के द्रव्य पीसे जाते हैं, उसे भी तिलककरणी कहते हैं। सलाई सोने की या हाथीदाँत की बनी हुई होती है। आँख में अंजन लगाने की जो सलाई होती है, उसे अंजनशलाका कहते हैं। अर्थात् इन सब चीजों को ले आओ। ग्रीष्मकाल की भयंकर गर्मी की शान्ति के लिए मुझे एक पंखा लाकर दो। इसके बाद वह प्रिया कहती है- “प्राणवल्लभ ! मेरी नाक में बहुत-से फालतू बाल हो गये हैं, उन्हें उखाड़ने के लिए एक संडासक-चींपिया या चिमटी अवश्य लावें। साथ ही केश संवारने के लिए एक कंघा, चोटी बाँधने के लिए ऊन की बनी हुई जाली या आँटी, चेहरा देखने के लिए एक दर्पण, तथा दाँत साफ करने के लिए दन्तमंजन या दतौन लाना मत भूलिएगा। आदर्शक शब्द दर्पण अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। जिससे दाँतों का मैल साफ किया जाता है, उसे 'दंतपक्खालणं' (दंतप्रक्षालनक) कहते हैं। वर्तमान युग की भाषा में इसे दंतमंजन या दतौन अथवा दाँत साफ करने का ब्रश-टुथब्रश कहा जा सकता है। चोटी बाँधने के लिए ऊन की बनी हुई जाली या आँटी को सीहलिपासग (सीहलिपाशक) कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003599
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1979
Total Pages1042
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size17 MB
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