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________________ ५५४ सूत्रकृतांग सूत्र प्रेरित करती रहती है। कभी कहती है--देखो, आज रसोई बनाने के लिए घर में ईंधन नहीं है, अतः बाजार से लकड़ियाँ ले आओ। कभी आज्ञा देती है-- आज रात को उजाला तभी होगा, जब दीपक या दीवट जलाने के लिए तेल होगा, अतः तेल ले आओ। अथवा यह अर्थ भी हो सकता है कि 'रात में प्रकाश के लिए जंगल से लकड़ियाँ ले आओ।' कभी कहती है.---'मेरे पात्रों को रंग दो, ताकि मैं भी सुखपूर्वक भिक्षाचरी कर लूगी अथवा मेरे पैरों को महावर आदि से रंग दो।' कभी कहती है--प्रिय ! अन्य सब कामों को छोड़कर मेरे पास आओ, मेरी पीठ में या मेरे अंगों में बहुत पीड़ा हो रही है, इसलिए पहले मेरी पीठ या अंगों पर मालिश कर दो। ये और इस प्रकार के अन्यान्य तुच्छ कार्यों में उक्त वेषधारी कामकिंकर को जोतकर नारी विविध नाच नचाया करती है । मूल पाठ वत्थाणि य मे पडलेहेहि, अन्नं पाणं च आहराहित्ति । गंधं च रओहरणं च, कासवगं च मे समणुजाणाहि ॥६॥ संस्कृत छाया वस्त्राणि च मे प्रत्युपेक्षस्व, अन्नं पानं च आहर इति। गन्धं च रजोहरणं च, काश्यपकं च मे समनुजानीहि ॥६॥ अन्वयार्थ (वत्थाणि य मे पडिलेहेहि) साधो ! मेरे वस्त्रों को तो देखो, कितने जीर्णशीर्ण हो गये हैं, इसलिए दूसरे नये कपड़े लाओ, अथवा देखो, ये मेरे वस्त्र बहत मैले हो गये हैं, इन्हें धोबी को दे दो, अथवा मेरे वस्त्रों की अच्छी तरह देखभाल करो, इन्हें सुरक्षित स्थान में रखो, ताकि चूहे, दीमक आदि न काट खाएँ। (अन्नं पाणं च आहराहित्ति) मेरे लिए अन्न और जल - पेय पदार्थ माँग लाओ। (गंधं च रओहरणं च) मेरे लिए कपूर आदि सुगन्धित पदार्थ एवं ब्रश, झाड़न, बुहारी, रजोहरण आदि धूल झाड़ने का साधन लाओ। (कासवगं च मे समणुजाणाहि) मैं लोच की पीड़ा नहीं सह सकती, इसलिए मुझे नाई से बाल कटाने की अनुज्ञा दो। भावार्थ हे साधो ! मेरे वस्त्रों को देखो, फट गये हैं, नये कप लाकर दो, अथवा मेरे कपड़े मैले हो रहे हैं, इन्हें धुलने दे दो। अथवा मेरे वस्त्र आदि सामग्री को चूहों से बचाकर सँभाल कर रखो। मेरे लिए अन्न-पानी आदि लाकर दो। तथा सुगन्धित पदार्थ एवं सुन्दर रजोहरण या धूल झाड़ने का साधन (ब्रश या बुहारी आदि) लाकर दो। मैं लोंच की पीड़ा नहीं सह सकती । अतः मुझे नाई से बाल कटाने की आज्ञा दो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003599
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1979
Total Pages1042
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size17 MB
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