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________________ ५५२ सूत्रकृतांग सूत्र "ये केश भी उखाड़ डालूगी, और इन आभूषणों को भी उतारने में नहीं हिचकँगी, और भी विदेशगमन, धनार्जन आदि कठोर से कठोर दुष्कर काम भी मैं तुम्हारे लिए कर लूंगी, सब कष्ट भी सह लूँगी, परन्तु मेरी एक प्रार्थना है, जो तुम्हें स्वीकार करनी होगी, उसके लिए मुझे बचन देना होगा कि तुम मुझे छोड़कर कहीं दूसरी स्त्रियों के साथ विहरण नहीं करोगे, मेरे सिवाय अन्यत्र कहीं नहीं जाओगे। मैं तुम्हारा वियोग क्षणभर भी नहीं सह सकूँगी। तुम मुझे जो आज्ञा दोगे, उसका पालन मैं नि:संकोच करूंगी।" इस प्रकार कामुक नारी भद्र साधु को अपने मायाजाल में फंसा लेती है। मूल पाठ अह णं से होई उवलद्धो, तो पेसंति तहाभूएहि । अलाउच्छेदं पेहेहि, वग्गुफलाई आहराहित्ति ॥४॥ संस्कृत छाया अथ स भवत्युपलब्धस्ततः प्रेषयन्ति तथा भूतैः। अलावच्छेदं प्रेक्षस्व, वल्गुफलान्याहर इति ॥४॥ अन्वयार्थ (अह) इसके पश्चात् (से उवलद्धो होई) यह साधु मेरे साथ घुलमिल गया है, या मेरे वश में हो गया है, इस बात को जब स्त्री जान लेती है, (तो पेसंति तहा भएहि) तब वह उस साधु को दास के समान अपने उन-उन कार्यों के लिए प्रेरित करती है--भेजती हैं। वह कहती है - (अलावुच्छेदं पेहेहि) तुम्बा काटने के लिए छुरी आदि ले आओ, (वगुफलाइं आहराहित्ति मेरे लिए अच्छे-अच्छे फल ले आओ। . भावार्थ साधू की चेष्टा अ र चेहरे आदि से जब स्त्रियाँ यह भाँप लेती हैं कि अब यह साधु हमारे साथ घुलमिल गया है, हमारे वश में हो गया है, तब वे एक नौकर को तरह अमुक-अमुक कार्य करने के लिए उसे प्रेरणा देकर भेजती हैं। वह कहती हैं-देखो जी, तुम्बा काटने के लिए छूरी या और कोई शस्त्र चाहिए, उसे बाजार से देखकर ले आओ तथा साथ-साथ मेरे लिए अच्छे-अच्छे फल भी लेते आना। व्याख्या नारीवशीभूत साधु के साथ नौकर का सा व्यवहार ___ इस गाथा में नारी के वश में हुए साधु के साथ स्त्रियों के व्यवहार का दिग्दर्शन कराया गया है-'अलाउच्छेदं .''वगुफलाइं आहराहित्ति।' आशय यह है कि पूर्वगाथा में कहे अनुसार स्त्रियाँ जब अपने पर मोहित साधु को अत्यन्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003599
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1979
Total Pages1042
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size17 MB
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