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सूत्रकृतांग सूत्र अध्ययन में नरक के घोर दुखों का वर्णन है । वीरस्तुति अध्ययन में भगवान महावीर को हस्तियों में ऐरावण, मृगों में मृगेन्द्र, नदियों में गंगा और पक्षियों में गरुड़ की उपमा देते हुए लोक में सर्वोत्तम बताया है। वीर्य अध्ययन में वीर्यसम्बन्धी विवेचन है । धर्म अध्ययन में सन्मति महावीर के धर्मों का प्ररूपण है। समाधि अध्ययन में दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तपःरूप समाधि को उपादेय बताया है। मार्ग अध्ययन में महावीरोक्त मार्ग को सर्वश्रेष्ठ प्रतिपादित करते हुए अहिंसादि धर्मों का निरूपण है । समवसरण अध्ययन में क्रियावाद, अक्रियावाद, विनयवाद और अज्ञानवाद का खण्डन है। याथातथ्य अध्ययन में उत्तम साधु आदि के लक्षण बताए गए हैं । ग्रन्थ अध्ययन में साधुओं के आचार-विचार का वर्णन है। आदानीय अध्ययन में स्त्रीसेवन आदि के त्याग का विधान है। गाथा अध्ययन में माहण, श्रमण, भिक्षु और निर्ग्रन्थ की व्याख्या है। द्वितीय श्रुतस्कंध में सात अध्ययन हैं। पुण्डरीक अध्ययन में इस लोक को पुष्करिणी की उपमा देते हुए तज्जीवतच्छरीरवाद, पंचमहाभूतवाद, ईश्वरकर्तृत्ववाद एवं नियतिवाद का खण्डन किया है । साधु को अशन, पान, खादिम, स्वादिम, इन चारों प्रकार के आहार के ग्रहण की शुद्ध-विधि बताई है । क्रियास्थान अध्ययन में १३ क्रियास्थानों का वर्णन है । इसी के अन्र्तगत भौम, उत्पाद, स्वप्न आदि शास्त्रों का उल्लेख है। आहारपरिज्ञा अध्ययन में वनस्पति, जलचर और पक्षियों आदि का वर्णन है। प्रत्याख्यानक्रिया अध्ययन में जीवहिंसा हो जाने पर प्रत्याख्यान की आवश्यकता बताई गई है। आचार-श्रुत अध्ययन में साधुओं के आचार का वर्णन है । पुण्य-पाप, बन्ध-मोक्ष, लोक-अलोक, साधु-असाधु आदि को स्वीकार न करने को, वहाँ अनाचार कहा है । छठे आई कोय अध्ययन में गोशालक, शाक्यभिक्षु, ब्राह्मण, एकदण्डी और हस्तितापसों के साथ आर्द्र क मुनि का संवाद है। सातवें नालन्दीय अध्ययन में गौतम गणधर का नालन्दा में पार्श्वनाथ-शिष्य उदकपेढालपुत्र के साथ वाद-विवाद हुआ, उसका वर्णन है । अन्त में पेढालपुत्र ने चातुर्याम धर्म का त्याग कर पंचमहाव्रत स्वीकार किए।
इस प्रकार सूत्रकृतांगसूत्र के अध्ययनों का संक्षिप्त परिचय है। सूत्रकृतांगसूत्र के अन्तर्गत समायित विषयों की एक सूची भी नन्दीसूत्र में दी गई है । वह इस प्रकार है
___ "से कि तं सुयगडे ? सुयगडे णं लोए सुइज्जइ, अलोए सुइज्जइ, लोयालोए सुइज्जइ । जीवा सुइज्जंति, अजीवा सुइज्जति, जीवाजीवा सुइज्जति । ससमए सुइज्जइ, परसमए सुइज्जइ, ससमय-परसमए सुइज्जइ । सुयगडेण असीयस्स किरियावाइसयस्स, चउरासीईए अकिरियावाइएणं सत्तट्ठीए अण्णानियवाईणं. बत्तीसाए वेणइयवाईणं, तिहतिसट्ठीणं पासंडियतयाणं वह किच्चा ससमए ठाविज्जइ ।"
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