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जहा मंधादए नाम, थिमिअं भुंजती दगं एवं विन्नवणित्थीसु, दोसो तत्थ कओ सिआ ? ॥। ११ ॥ जहा विहंगमा पिंगा, थिमिअं भंजती दगं एवं विन्नवणित्थी, दोसो तत्थ कओ सिआ ? ॥ १२ ॥ एवमेगे उपासत्था मिच्छदिट्ठी अणारिया अज्भोववन्ना कामेहि, पूयणा इव तरुणए संस्कृत छाया
सूत्रकृतांग सूत्रं
एवमेके तु पार्श्वस्थाः प्रज्ञापयन्त्यनार्याः स्त्रीवशंगता बालाः जिनशासनपराङ्मुखाः ||६|| यथा गण्डं पिटकं वा परिपीड्येत मुहूर्तकम् । एवं विज्ञापनोस्त्रीषु दोषस्तत्र कुतः स्यात् ? ।। १० ।। यथा मन्धादनो नाम स्तिमितं भुक्ते दकम् एवं विज्ञापनीस्त्रीषु, दोषस्तत्र कुतः स्यात् ? ।।११।। यथा विहंगमा पिंगा स्तिमितं भुक्ते दकम् एवं विज्ञापनीस्त्रीषु दोषस्तत्र कुतः स्यात् ? एवमेके तु पार्श्वस्था:, मिथ्यादृष्ट्योऽनार्याः । अध्युपपन्नाः कामेषु, पूतना इव तरुण अन्वयार्थ
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।।१२।।
।।१३।।
।। १३॥
( इत्थीव संगया) स्त्री के वश में रहने वाले ( बाला) अज्ञानी ( जिणसासणपरम्हा) जिनशासन ( जैनधर्म) से पराङमुख (अणारिया ) अनार्य ( एगेपासत्था ) कई पार्श्वस्थ या पाशस्थ ( एवं ) इस प्रकार ( पन्नवंति ) प्ररूपणा करते हैं ।
( जहा ) जैसे (गंड) फुंसी ( पिलागं वा ) अथवा फोड़े को ( मुहुत्तगं ) मुहूर्त भर ( परिपीलेज्ज ) दबाकर मवाद निकाल देना चाहिए, इसी तरह (विन्नव णित्थी सु) सहवास की प्रार्थना करने वाली स्त्रियों के साथ समागम कर लेना चाहिए | ( तत्थ ) इस कार्य में (दोसो कओ सिया) दोष कहाँ से हो सकता है ?
( जहा ) जैसे ( मंधादए नाम ) भेड़ (थिमिअं) बिना हिलाये ( दगं ) पानी (भुंजती ) पीती है, ( एवं ) इसी तरह (विन्नवणित्थी सु) समागम की प्रार्थना करने वाली स्त्रियों के साथ समागम कर लिया जाय तो ( तत्थ ) इसमें ( दोसो कओ सिया) कौन-सा दोष है ?
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( जहा ) जैसे (पिंगा ) पिंगा नामक ( विहंगमा) पक्षिणी ( थिमिअं) बिना हिलाए ( दगं ) पानी (भुंजती) पी लेती है, ( एवं ) इसी तरह (विन्नवणित्थी सु) समागम
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