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सूत्रकृतांग सूत्र
तत्थ मंदा विसीयंति, वाहच्छिन्ना व गद्दभा। पिट्ठतो परिसप्पंति, पिठसप्पी य संभमे ॥५॥
संस्कृत छाया अभुक्त्वा नमिवैदेही, रामगुप्तश्च भुक्त्वा । बाहुक उदकं भुक्त्वा, तथा नारायण ऋषिः ।।२।। आसिलो देवलश्चैव, द्वैपायनो महाऋषिः । पराशर उदकं भुक्त्वा बीजानि हरितानि च ॥३।। एते पूर्वं महापुरुषा आख्याता इह सम्मताः ।। भक्त्वा बीजोदकं सिद्धा इति मयानुश्र तम् ।।४।। तत्र मन्दाः विषीदन्ति, बाहच्छिन्ना इव गर्दभाः। पृष्ठतः परिसर्पन्ति, पृष्ठसपी च संभ्रमे ॥५॥
__ अन्वयार्थ (नमी विदेही अभंजिया) विदेह देश के राजा नमिराज ने आहार छोड़ करके (य) और ( रामगृत्त) रामगुप्त ने (भुजिया) आहार खाकर, तथा (बाहुए) बाहुक ने (तहा) तथा (नारायणे रिसी) नारायण ऋषि ने (उदगंभोच्चा) शीतल जल का सेवन करके सिद्धिलाभ किया था।
(आसिले) आसिल ऋषि, (देविले) देवलऋषि (महारिसी दीवायण) तथा महर्षि द्वैपायन एवं (पारासरे) पाराशर ऋषि इन लोगों ने (दगंबीयाणि हरियाणि भोच्चा) शीतलजल, बीज एवं हरी वनस्पतियों का उपभोग करके मोक्ष पाया था।
(पुन्वं) प्राचीन काल में (एतेमहापुरिसा) ये महापुरुष (आहिया) समस्त विश्व में विख्यात थे (इह) तथा इस जैन आगम में भी (संमता) सम्मत–मान्य हैं। (बीओदगं भोच्चा) इन महापुरुषों ने बीज और सचित्त जल का उपभोग करके (सिद्धा) मोक्ष प्राप्त किया था। (इति) यह (मेयमणुस्सुअं) मैंने (महाभारत आदि में) परम्परा से सुना है।
(तत्थ) इस प्रकार की भ्रान्तिजनक दुःशिक्षा के उपसर्ग होने पर (मंदा) कच्ची बुद्धि के मंद साधक (वाहच्छिन्ना) भार से पीड़ित (गद्दभा व) गधों की तरह (विसीयंति) संयमभार वहन करने में दुःख महसूस करते हैं। (संयमे) जैसे अग्नि आदि का उपद्रव होने पर (पिट्ठसप्पी) लकड़ी के टुकड़े की सहायता से चलने वाला पैरों से रहित पुरुष (लँगड़ा) (पिठंतो) भागने वाले लोगों के पीछे-पीछे (परिसप्पति) चलता है । उसी तरह वह मंदमति भी संयम में सबसे पीछे हो जाता है, अथवा उक्त लालबुझक्कड़ों का पिछलग्गू बन जाता है।
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