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सूत्रकृतांग सूत्र
निन्दा का रास्ता ) ( ण नियए) नियत - युक्तिसंगत नहीं है (वती) आपने जो सम्यग्दृष्टि सुविहित साधुओं के लिए आक्षेपात्मक वचन कहा है, वह भी (refaar) बिना विचारे कहा है, ( किती) एवं आप लोग जो कार्य कर रहे हैं, वह भी विवेकशून्य है ।
भावार्थ
हेय और उपादेय पदार्थों को यथार्थरूप से जानने वाला साधक जो भी बात अन्यदर्शनी आक्षेपकर्ताओं को बताता है, वह यथार्थ ही बताता है, अयथार्थ नहीं । इस दृष्टि से अन्यतीर्थियों को ईमानदारी से यथार्थ बात की शिक्षा देता हुआ कहता है - आप लोगों ने जो रवैया या रास्ता अख्तियार किया है, वह युक्तिसंगत नहीं है । तथा आप जो सच्चरित्र साधुओं पर आक्षेप करते हैं, वह भी बिना विचारे करते हैं, एवं आपका जो कार्य या व्यवहार है, वह भी विवेकरहित है ।
व्याख्या
प्रेम से सच्ची और साफ-साफ बातें कहें
जो साधक त्याज्य और ग्राह्य पदार्थों का ज्ञाता है तथा रोष-द्वेषरहित होकर सत्य बातें कहने के लिए कृतप्रतिज्ञ है, वह अन्यदर्शनी लोगों से तू-तू-मैं-मैं, व्यर्थ विवाद, झगड़ा या वाक्कलह करने की अपेक्षा उन्हें बहुत ही मधुर शब्दों में, नम्रतापूर्वक सच्ची और साफ-साफ बातें समझा दे - उन्हें हितकर तथा वास्तविक सत्य बातों की शिक्षा दे कि आपने जो मार्ग या रवैया अपनाया है, कि निष्किंचन होने के कारण साधु को उपकरण कतई रखने नहीं चाहिए, इसी प्रकार परस्पर एकदूसरे की सेवा भी नहीं करनी चाहिए, आपका यह रास्ता युक्तिसंगत व निरापद नहीं है । तथा आप लोग जो यह कहते हैं कि जो रोगी साधु को आहार लाकर देते हैं, वे गृहस्थ के समान हैं, यह भी आप बिना विचारे कहते हैं तथा आप जो कार्य या व्यवहार करते हैं, वह भी विवेकशून्य है । अतः आप हमारी बात पर दीर्घदृष्टि से सोचें-विचारें और वैसा करने पर आपको हमारी बात की सचाई स्वतः ज्ञात हो जाएगी । हम आपके हितैषी हैं, द्वेषी नहीं । हमारा आपसे यह नम्र सुझाव है कि घाव को अत्यधिक खुजलाने की तरह बात को बतंगड़ बनाना श्रेयस्कर नहीं है ।
मूल पाठ
एरिसा जावई एसा अग्गवेणु व्व करिसिता ।
गिहिणो अभिहड सेयं, भुंजिउ ण उ भिक्खुणं ॥ १५॥
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संस्कृत छाया ईदृशी या वागेषा, अग्रवेणुरिव कर्षिता गृहिणोऽभ्याहृतं श्रेयः भोक्तुं न तु भिक्षूणाम् || १५||
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