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उपसर्गपरिज्ञा : तृतीय अध्ययन-तृतीय उद्देशक
४४५ ___आशय यह है कि कायर और वीर का पता युद्धकाल में लग जाता है। जिस समय युद्ध प्रारम्भ होता है, उससे पूर्व युद्धविद्या में अकुशल कायर व्यक्ति शत्रु सेना के साथ युद्ध के मौके पर बचने के लिए ऐसे दुर्गम स्थानों की तलाश कर लेता है, जहाँ अच्छी तरह छिपा जा सके या शत्र सेना के प्रहारों से बचा जा सके । वे दुर्गम स्थान कौन-कौन से हो सकते हैं ? इसे मोटे तौर पर शास्त्रकार बताते हैं'वलय' यानी जहाँ मंडलाकार पानी विद्यमान हो, वह स्थान अथवा जलरहित गहरा गोल गड्ढा आदि स्थान, जहाँ से निकलना और घुसना कठिन हो। अथवा 'गहणं' यानी वृक्षों और बेलों से कमर तक ढका हुआ सघन स्थान, 'शूम' अर्थात् छिपा हुआ गुफा, बीहड़ आदि स्थान । वह कायर पुरुष इन स्थानों को पहले क्यों देखता है ? इसका समाधान है.---'को जाणइ पराजयं ?' अर्थात् वह समझता है कि इस युद्ध में बड़े-बड़े शूरवीर योद्धा एकत्रित हुए हैं, कौन जानता है, किसकी हार होगी, किसकी जीत ? मान लो, दुर्भाग्य से हार हो गयी तो फिर अपने प्राण बचाने मुश्किल होंगे। अतः प्राण बचाने के लिए पहले से स्थान ढूंढ लेना अच्छा रहेगा।
मूल पाठ मुहुत्ताणं मुहुत्तस्स, मुहुत्तो होइ तारिसो । पराजियाऽवसप्पामो, इति भीरु उवेहई ॥२॥
संस्कृत छाया मुहूर्ताणां मुहूर्तस्य, मुहूर्तो भवति तादृशः । पराजिता अवसामः, इति भीरुरुपेक्षते ।।२।।
अन्वयार्थ (मुहुत्ताणं) बहुत मुहूर्तों का (मुहुत्तस्स) अथवा एक मुहूर्त का (तारिसो) कोई ऐसा (मुहत्तो होइ) अवसर होता है, (जिसमें जय या पराजय सम्भव है) (पराजिया) अत: शत्र से हारे हुए हम (अवसप्पामो) जहाँ भागकर छिप सकें (इति) ऐसे स्थान को (भीरु) कायर पुरुष (उवेहइ) सोचता है ।
भावार्थ
बहुत मुहतों का अथवा एक ही मूहूर्त का कोई ऐसा अवसर विशेष होता है, जिसमें जय या पराजय की सम्भावना रहती है। इसलिए "हम पराजित होकर जहाँ छिप सकें," ऐसे स्थान को कायर पुरुष पहले ही सोचता है, तलाशता है।
व्याख्या
कायर पुरुष का भीरतापूर्ण चिन्तन इस गाथा में पुनः युद्धभीरु व्यक्ति का कायरताभरा चिन्तन दिया गया है कि
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