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उपसर्गपरिज्ञा : तृतीय अध्ययन - द्वितीय उद्देशक
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सोचता है कि "इसमें क्या धरा है ? ये मकान तो वैसे ही बने हुए हैं, अन्य सुखसामग्री न हो तो केवल किसी के मकान में जाने से क्या लाभ ?" अतः वे सत्ताधीश या धनाढ्य लोग साधु को आकृष्ट करने या खरीद लेने के लिए उसे खुल्लमखुल्ला प्रलोभन अपने यहाँ लाकर देते हैं- "देखिये, महात्मन् ! ये हाथी, घोड़े, रथ और पालकी आपके लिए प्रस्तुत हैं । आपको मेरे गुरु होकर पैदल नहीं चलना है । इनमें से जो भी सवारी आपको अभीष्ट हो, उसका जी चाहा उपयोग करें। और जब कभी आपका मन उचट जाय, सैर करने की इच्छा हो तो ये बाग-बगीचे हैं, इनमें आप मनचाहा भ्रमण करें, ताजे फूलों की सुगन्ध लें, प्राकृतिक सौन्दर्य को निहारें । 'च' शब्द से इन्द्रियों को सुख देने वाले अन्यान्य विषयों के उपभोग के लिए भी आमंत्रित कर सकते हैं । वे यह भी कह सकते हैं कि यह सब उत्तमोत्तम विषयभोग सामग्री आपके चरणों में समर्पित हैं । आप इनका मनचाहा उपभोग करें। हम भी आपके भक्त हैं । आप जो भी आज्ञा देंगे, हम उसे सहर्ष शिरोधार्य करेंगे। हम आपकी प्रतिष्ठा में कोई कमी न आने देंगे । हम आपका सत्कार - सम्मान करते हैं ।"
मूल पाठ वत्थगन्धमलंकारं इत्थीओ सयणाणि य 1 भुजाहिमाई भोगाई, आउसो ! पूजयामु तं ।। १७।।
संस्कृत छाया
वस्त्र - गन्धमलंकारं स्त्रियः शयनानि च 1
भुंक्ष्वेमान् भोगान्, आयुष्मन् ! पूजयामस्त्वाम् || १७|| अन्वयार्थ
( आउसो ) हे आयुष्मन् ! ( वत्थगन्धं ) वस्त्र, सुगन्धित पदार्थ, (अलंकार) आभूषण ( इत्थीओ) अंगनाएँ (य) और ( सयणाणि ) शय्या तथा शयनसामग्री, (इमाई भोगाई) इन भोगों - भोगसामग्री का ( भुंज) मनचाहा उपभोग करें। (तं ) आपकी हम ( पूजयामु) पूजा-प्रतिष्ठा करते हैं ।
भावार्थ
हे आयुष्मन् ! उत्तमोत्तम वस्त्र, सुगन्धित पदार्थ, विविध आभूषण, नवयौवना अंगनाएँ और शय्या आदि शयनीय सामग्री, इन भोगों का आप जी चाहा उपभोग करें। हम आपकी पूजा-प्रतिष्ठा करत हैं ।
व्याख्या
अन्य भोग्यसामग्री का आमंत्रण पूर्वगाथा में भी कुछ भोग्य सामग्री के आमन्त्रण का उल्लेख है और इसमें भी । परन्तु इस गाथा में कुछ विशिष्ट सामग्रियों के आमन्त्रण का उल्लेख किया गया है । इसका रहस्य यह है कि पूर्व गाथा में जिस भोग्य सामग्री का उल्लेख है,
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