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संस्कृत छाया
अप्येके ज्ञातयो दृष्ट्वा रुदन्ति परिवार्य च
पोषय नस्तात ! पोषितोऽसि, कस्य तात ! जहासि नः || २ ||
सूत्रकृतांग सूत्र
अन्वयार्थ
( अध्येगे) कई-कई ( नायओ) ज्ञातिजन ( दिस्स) साधु को देखकर ( परिवारिया ) उसे घेरकर ( रोयंति) रोते हैं- विलाप करते हैं । वे कहते हैं - ( ताय ) तात ! (णे पोस ) आप हमारा पालन-पोषण करें। ( पुट्ठोऽसि ) हमने आपका पालनपोषण किया है । (ताय) हे तात ! ( णे) अब हमको (कस्स) आप क्यों (किसलिए ) ( जहासि) छोड़ते हैं ?
भावार्थ
साधु के पारिवारिकजन उसे देखकर रोते हैं, आँसू बहाते हैं, और कहते हैं - तात ! अब आप हमारा पालन-पोषण करें, हमने बचपन से आपका पालन-पोषण किया है, अब आप हमें किसलिए छोड़ रहे हैं ?
व्याख्या
पारिवारिकजनों का अपने भरण-पोषण के लिए अनुरोध
इस गाथा में स्वजन सम्बन्धी उपसर्ग कैसे-कैसे होते हैं ? किस रूप में आते हैं ? इसे बताने के लिए कहा है - " अप्पेगे नायओ जहासि णे ।" आशय यह है कि कुछ ज्ञातिजन - माता - पिता आदि स्वजनवर्ग साधु को साधुधर्म में दीक्षित होते हुए या दीक्षित हुए देखकर उसे घेरकर जोर-जोर से रोने लगते हैं । स्वजनों का रुदन कच्चे साधक के मन को पिघला देता है । उन स्वजनों की आँखों में आँसू देख - कर उसके मन में आता है— चलो, इनकी भी बात सुन लें । इस प्रकार जब वह साधु उनकी मोहगर्भित पुकार सुनने के लिए उत्सुक होता है तो वे आँखों से अश्रु बहते हुए कहते हैं - बेटा ! हमने बचपन से तुम्हारा इसलिए पालन-पोषण किया था कि बड़े होकर तुम हमारी वृद्धावस्था में सेवा करोगे, हमारा भरण-पोषण करोगे, मगर तुम तो हमें अधबिच में ही छिटकाकर जा रहे हो । चलो, पुत्र ! हमारा भरणपोषण करो । अब हमें छोड़कर क्यों जा रहे हो ? तुम्हारे सिवाय दूसरा कोई हमारा रक्षक - पोषक नहीं है । इस प्रकार का पारिवारिकजनों का मोहगर्भित अनुरोध सुनकर बहुत से साधकों का दिल वापस घर लौटने को मचल उठता है ।
मूल पाठ
पिया ते थेरओ ताय ! ससा ते खुड्डिया इमा । भायरी ते सगा (सवा) ताथ ! सोयरा कि जहासि णे || ३ ||
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