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उपसर्गपरिज्ञा: तृतीय अध्ययन --- प्रथम उद्देशक
व्याख्या
चोर या खुफिया समझकर साधु को बाँध देना
ऐसे अनार्य लोग हैं, जिनकी बुद्धि मिथ्यात्व से ग्रस्त है, और जो रागद्व ेष से भरे हैं, वे अनार्यदेश की सीमा पर या आस-पास विचरण करते हुए सुव्रती साधु को देखकर 'यह जासूस है, खुफिया या चोर है, इस संदेह में गिरफ्तार करके रस्सी से बाँध देते हैं । वे साधु को पीटते हैं, क्रोधवश गालियाँ भी देते हैं, कड़वे वचन भी कहते हैं । सद्-असद्विवेक से रहित वे मूढ़ उसे धमकाते हैं । परन्तु सुव्रती साधु यही सोचे कि यह मेरी परीक्षा का समय है। इस समय मुझे जरा-सा भी घबराना नहीं चाहिए । समभावपूर्वक परीक्षा देकर उसमें उत्तीर्ण होना चाहिए ।
मूल पाठ
तत्थ दंडेण संवीते मुट्ठिणा अदु फलेण वा ।
नातीण सरती बाले, इत्थो वा कुद्धगामिणी ॥ १६ ॥
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संस्कृत छाया
तत्रः दण्डेन संवीतो, मुष्टिनाऽथवा फलेन वा ।
ज्ञातीनां स्मरति बालः, स्त्रीवत् क्रुद्धगामिनी ||१६||
अन्वयार्थ
( तत्थ ) उस अनार्यदेश की सरहद पर विचरणशील साधु को (दंडेण) डंडों से (मुट्ठा) मुक्कों से ( अ ) अथवा ( फलेन ) विजौरा आदि कठोर फल से या तलवार या भाले आदि के अग्रभाग से (संवीते) प्रहार किया जाता - पीटा जाता हुआ ( बाले) वह बालसाधु ( कुद्धगामिणी इत्थी वा ) क्रोधित होकर घर से निकल भागने वाली स्त्री की तरह ( नातीण ) अपने ज्ञातिजनों स्वजनों को (सरती ) याद करता है ।
भावार्थ
जब अनार्यदेश की सीमा पर विचरता हुआ साधु अनार्य पुरुषों द्वारा लाठी, डंडे, मुक्के या लोहफलक के द्वारा पीटा जाता है, तब वह अपने बन्धुधों को उसी तरह स्मरण करता है, जैसे क्रोधित होकर घर से भागी हुई स्त्री अपने ज्ञातिजनों को स्मरण करती है ।
व्याख्या
शस्त्रास्त्रों से प्रहार : ज्ञातिजनों की याद अनार्यदेश की सीमा पर विचरण करते हुए साधु को चोर, गुप्तचर आदि के सन्देह में पकड़कर डंडों, मुक्कों या लोह - फलकों या बीजोरा आदि फलों से मारनेपीटने लगते हैं, तब वह कच्चा बालसाधक अपने सम्बन्धियों को याद करके मन में
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