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तावद्गजः प्रस्त्र तदानगण्डः करोत्यकालाम्बुदगजितानि । यान सिंहस्य गुहास्थलीषु लांगूलविस्फोटरवं शृणोति ॥
अर्थात् -- मदोन्मत्त हाथी तभी तक बेमौसम के बादलों के समान घोर गर्जना करता है जब तक गुफा में स्थित केसरीसिंह की दहाड़ और पूँछ की फटकार नहीं सुन लेता ।
सूत्रकृतांग सूत्र
इस सम्बन्ध में शिशुपाल और श्रीकृष्ण का दृष्टान्त देखकर शास्त्रकार वस्तुतत्त्व को समझाते हैं
वसुदेव की बहन के गर्भ से दमघोष राजा का पुत्र शिशुपाल उत्पन्न हुआ । उसके चार भुजाएँ थीं । इस कारण उसकी माता ने उसकी चार भुजाएँ एवं उसके अद्भुत पराक्रम तथा कलहकारी स्वभाव को देखकर उसके जीवन का भविष्य जानने के लिए ज्योतिषी को बुलाया । ज्योतिषी ने उसकी जन्मपत्री पर से ग्रहगोचर देखकर प्रसन्नहृदया माद्री से भविष्यफल बताते हुए कहा - "तुम्हारा पुत्र अत्यन्त बलवान् और युद्ध में अजेय होगा, परन्तु जिसे देखकर तुम्हारे पुत्र की स्वाभाविकरूप से दो ही भुजाएँ रह जायें, समझ लेना निःसन्देह उसी पुरुष से इसे भय होगा ।" इसके पश्चात् भयभीत माद्री (कृष्ण की फूफी) ने अपने पुत्र को कृष्ण को दिखाया । ज्यों ही कृष्ण ने माद्रीसुत शिशुपाल को देखा, त्यों ही उसकी स्वाभाविक दो ही भुजाएँ रह गयीं । यह जानकर माद्री (कृष्ण की फूफी) ने अपने पुत्र को श्रीकृष्ण के चरणों में झुकाकर प्रार्थना की- "श्रीकृष्ण ! यह लड़का यदि अपमान कर दे तो नादान समझकर क्षमा कर देना ।" श्रीकृष्ण ने भी उसके सौ अपराध क्षमा करने की प्रतिज्ञा की । इसके पश्चात् शिशुपाल जब जवान हुआ तो यौवनमद से मत्त होकर श्रीकृष्ण को गाली देने लगा । यद्यपि श्रीकृष्ण दण्ड देने में समर्थ थे, तथापि अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार उसके अपराधों को सहन करते रहे । जब शिशुपाल के सौ अपराध पूर्ण हो गये, तब श्रीकृष्ण ने उसे बहुत समझाया, परन्तु वह नहीं माना ।
एक बार किसी बात को लेकर शिशुपाल ने श्रीकृष्ण के साथ युद्ध छेड़ दिया । जब तक श्रीकृष्ण स्वयं युद्ध के मैदान में नहीं आये थे, तब तक वह अपने और प्रतिपक्षी सैन्य के लोगों के सामने बढ़चढ़कर अपनी शेखी बघारने लगा । किन्तु ज्यों ही शस्त्रास्त्र का प्रहार करते हुए युद्ध में दृढ़ स्वभाव वाले श्रीकृष्ण को सामने उपस्थित देखा, त्यों ही उसके हौंसले पस्त हो गये । वह घबराकर पानी-पानी हो गया । किन्तु अपनी दुर्बलता छिपाने के लिए वह श्रीकृष्ण पर प्रहार करने लगा । अन्ततः उसके सौ अपराध पूरे हुए देख श्रीकृष्ण ने चक्र के द्वारा उसका सिर काट दिया । अब इसी बात को शास्त्रकार दैनन्दिन अनुभवसिद्ध उदाहरण द्वारा प्रस्तुत करते हैं—
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