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वैतालीय : द्वितीय अध्ययन–तृतीय उद्देशक
जिससे उत्तम कोई ज्ञान तथा दर्शन नहीं है, उसे क्रमशः अनुत्तरज्ञान एवं अनुत्तरदर्शन कहते हैं। भगवान् को यहाँ अनुत्तरज्ञानी एवं अनुत्तरदर्शी कहा गया है । अर्थात् भगवान् अपने से कथंचित् भिन्न ज्ञान-दर्शन के आधार थे। अरहा का अर्थ है- पूज्य । भगवान् इन्द्र आदि देवों द्वारा ही नहीं, समस्त मनुष्य एवं तिर्यंचों द्वारा पूजनीय थे । 'वेसालिए' के दो अर्थ निकलते हैं ---(१) विशालानगरी में कहा गया प्रवचन, (२) विशाला कुल में उत्पन्न वैशालिक । अथवा वैशालिक शब्द से यहाँ भगवान ऋषभदेव तथा भगवान महावीर दोनों अर्थ निकाले जाते हैं। जैसे कि कहा है
दिशाला जननी यस्य, विशालं कुलमेव वा ।
विशालं वचनं चास्य तेन वैशालिको जिनः ।। अर्थात् --- जिनकी माता विशाला थी, कुल भी विशाल था, जिनका प्रवचन भी विशाल था, इस कारण जिनेश्वरदेव को वैशालिक कहते हैं ।
इस प्रकार सूत्रकृतांगसूत्र के द्वितीय अध्ययन का तृतीय उद्देशक अमरसुखबोधिनी व्याख्यासहित समाप्त हुआ।
॥ सूत्रकृतांगसूत्र का द्वितीय अध्ययन समाप्त ॥
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